पटना/नई दिल्ली: Stop Rape बिहार के मुजफ्फरनगर में मासूम बच्ची के साथ दरिंदगी की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि समस्तीपुर से वैसी ही एक और भयावह घटना सामने आ गई, जिसने पूरे राज्य को झकझोर कर रख दिया है। लेकिन इन घटनाओं को महज बिहार की समस्या मानना एक बड़ी भूल होगी, क्योंकि ये घटनाएं दरअसल उस गहराते राष्ट्रीय संकट की निशानी हैं, जो भारत में बच्चियों की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर रहा है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े साफ कहते हैं कि साल 2016 से 2022 के बीच बच्चियों से बलात्कार के मामलों में लगभग 97% का इजाफा हुआ है — 2016 में दर्ज 19,765 मामलों की संख्या 2022 में बढ़कर 38,911 हो गई।
यही नहीं, 2022 में बलात्कार के बाद हत्या के सबसे अधिक 18 मामले मध्य प्रदेश में दर्ज हुए, जबकि महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में 14-14 बच्चियों की इसी तरह जान ले ली गई। CRY (चाइल्ड राइट्स एंड यू) नामक एनजीओ की रिपोर्ट बताती है कि साल 2006 में बच्चियों के साथ अपराध के कुल 18,967 मामले थे, जो 2016 में बढ़कर 1,06,958 हो गए — यानी महज एक दशक में पांच गुना से अधिक की बढ़ोतरी। रिपोर्ट यह भी उजागर करती है कि देश के केवल पांच राज्यों में ही ऐसे मामलों का लगभग आधा बोझ सिमटा हुआ है। सरकार ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए निर्भया फंड के तहत देशभर में 790 फास्ट ट्रैक और पॉक्सो अदालतें स्थापित करने की योजना बनाई, जिनमें से 750 अदालतें अक्टूबर 2024 तक शुरू हो चुकी थीं और अब तक 2.87 लाख से अधिक मामलों का निपटारा कर चुकी हैं।
लेकिन सवाल यह है कि क्या इतने भयावह आंकड़ों के बावजूद समाज और प्रशासन दोनों का रवैया बदल रहा है? जब तक इन दरिंदों को त्वरित और कठोर सजा नहीं मिलेगी, और जब तक समाज जागरूक होकर इन घटनाओं के खिलाफ आवाज़ नहीं उठाएगा, तब तक मासूमों का बचपन ऐसे ही दरिंदगी की भेंट चढ़ता रहेगा। ये आंकड़े नहीं, हमारे समाज की चेतावनी हैं — कि अब भी नहीं चेते, तो बहुत देर हो जाएगी।

