PURNIA NEWS : पूर्णिया कॉलेज पूर्णिया के महर्षि मेही दास प्रेक्षागृह में चर्चित कवि रंजित तिवारी के प्रथम काव्य संग्रह, “समय के रंग” पर पुस्तक – परिचर्चा का आयोजन पूर्णिया की साहित्यिक चौपाल चटकधाम, रचनाकार प्रकाशन एवं पूर्णिया कॉलेज, पूर्णिया के संयुक्त तत्वावधान में किया गया । इस अवसर पर पूर्णिया जनपद के कई साहित्यकार और साहित्य अनुरागियों ने कवि रंजित तिवारी को, उनकी प्रथम कृति “समय के रग” के प्रकाशन पर बधाई देते हुए कृति के संदर्भित अपने-अपने विचार रखें । कविता संग्रह “समय के रंग” का प्रकाशन रचनाकार प्रकाशन के माध्यम से किया गया है, सौ पृष्ठों वाली इस कविता संग्रह में कवि रंजित तिवारी की 65 कविताएं सम्मिलित है । सभी रचना अपने आप में अनुपम है। यह आयोजन दो सत्रों में किया गया। मुख्य सत्र में पुस्तक पर चर्चा तथा दूसरे सत्र में स्थानीय कवियों की गोष्ठी का भी आयोजन किया गया। मुख्य सत्र में पुस्तक – परिचर्चा कार्यक्रम की अध्यक्षता, आकाशवाणी से सेवानिवृत निदेशक व कवि विजय नंदन प्रसाद ने की तथा मुख्य अतिथि के रूप मे, विद्या विहार आवासीय विद्यालय के प्राचार्य, निखिल रंजन मौजूद रहे । जबकि विशिष्ट अतिथि के तौर पर साहित्यंगन,पूर्णिया के अध्यक्ष, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ रामनरेश भक्त, कथाकार डॉ निरुपमा राय तथा साहित्यांचल के अध्यक्ष, कवि यमुना बसाक मौजूद रहे। वही स्वागत कर्ता के रूप में कार्यक्रम की मेजबानी पूर्णिया महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ० एस एल वर्मा ऊर्फ प्रोफेसर शंभू कुशाग्र ने किया। कार्यक्रम में विषय प्रवेश करवाया वरिष्ठ कवि गिरजानंद मिश्र ने और मंच संचालन का दायित्व युवा कवि व शायर शम्स तबरेज ने निभाया।
मौके पर कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विजय नंदन प्रसाद ने कहा कि “समय के रंग” रंजित तिवारी की प्रथम काव्य- संग्रह है और इसमें शामिल इनकी सभी रचनाएं समाजवाद और वैचारिक चेतना से रू ब रू करवाती है,जो यह दर्शाती है कि रंजित तिवारी वर्तमान धारा के कवि है। इनकी सृजन क्षमता इन्हें बहुत आगे लेकर जाएगी। मैं इन्हे उनकी इस प्रथम कृति के लिए अपनी शुभकामनाएं देता हूं। मुख्य अतिथि निखिल रंजन ने कहा, रंजित तिवारी एक योग्य शिक्षक तो हैं ही, साथ ही एक योग्य कवि भी हैं, इसका अंदाजा इनकी इस प्रथम काव्य कृति को पढ़कर लगाया जा सकता है । रंजित तिवारी की रचनाओं में चेतन है, ऊर्जा है और मानवीय चिंतन भी शामिल है । यही एक कवि के रूप मे इनकी योग्यता का प्रमाण है। डॉ रामनरेश भक्त ने कविता के विभिन्न दौर में हुए बदलाव की चर्चा करते हुए, रंजित तिवारी की कविता को वर्तमान के काव्य चेतना के अनुरूप बताते हुए सूक्ष्म बिंदुओं का मार्गदर्शन भी किया । प्रोफेसर एसएल वर्मा ने “समय के रंग” में छिपे विविध रस और रंग पर प्रकाश डालते हुए कवि रंजित तिवारी को एक योग्य कवि बताया और उन्हें अपनी शुभकामनाएं दी। डॉक्टर निरुपमा राय ने काव्य संग्रह में शामिल कविताओं में से कई कविताओं की व्याख्या करते हुए कवि को इस कृति के प्रकाशन पर बधाई दी।जबकि यमुना प्रसाद बसाक ने कहा, कविता जीवन है और जीवन में कविता का विशेष महत्व है । रंजित तिवारी जी की कविताएं भी अपने आप में महत्वपूर्ण है।कथाकार सुरेंद्र शोषण ने कहा कि वर्तमान समय में जिस तरह की कविता लिखी जानी चाहिए, उस तरह का कलेवर कवि रंजित तिवारी में है। इसलिए इनसे भविष्य में अपेक्षा है। संजय सनातन ने कहा इनकी कविताओं में समय की अनुभूति और मानवीय एहसास दोनों की झलक मिलती है, इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि,निश्चित तौर पर कवि रंजित तिवारी की कविता की धारा अविरल बहती रहेगी। प्रोफेसर गिरीश कुमार सिंह ने कहा, मुझे कवि रंजित तिवारी जी की रचनाओं को पढ़कर यह महसूस हुआ कि,यह एक मझे हुए कवि तो है ही, साथ ही इनकी सोच भी उन्नत है, इन्होंने जिस तरह से अपनी कृति को अपने बड़े पापा और बाबूजी को समर्पित किया है उससे यह एहसास हो जाता है । मेरी शुभकामनाएं हैं। पुलिस प्रशासन की सेवा से सम्बद्ध साहित्य मर्मज्ञ वैदिक पाठक ने अपनी बातों को रखते हुए कहा, साहित्य मानवीय चेतना को कायम रखने के लिए आवश्यक है और जब कवि एक शिक्षक भी हो तो उनसे उम्मीदें और भी बढ़ जाती है ।कवि रंजित तिवारी अपनी लेखनी से उम्मीदों पर खड़े उतरते नजर आ रहे हैं। वहीं वरिष्ठ कवि महेश विद्रोही ने भी कवि रंजित तिवारी के शिल्पगत विशेषताओं की चर्चा करते हुए , संग्रह में शामिल कविताओं की चर्चा की । डॉ कमल किशोर वियोगी ने कवि रंजित तिवारी के साहित्य साधना से जुड़े संदर्भों की चर्चा करते हुए बताया कि अलग-अलग पड़ाव पर कवि रंजित तिवारी अपनी अभिव्यक्ति से कैसे सबों के प्रिय बनते चले गए और आज इनकी प्रथम कृति के प्रकाशन से यह सिद्ध होता है कि, आने वाला कल इन्हीं का है। कवि रंजित तिवारी ने भी अपने अपनी बातों को रखते हुए कविता लेखन से लेकर प्रकाशन तक के अनुभवों को साझा किया l
इस दरमियान वह भावुक हो गए और अपने पिता को याद करते हुए कहा कि, मुझे याद है,किस तरह मेरी पहली कविता के प्रकाशन पर मेरे पिता ने अपनी प्रशंसा का एहसास घर से लेकर चौराहे के बाजार तक खुलकर बड़े ही अल्हाद के साथ किया था और मेरी हौसला अफजाई करते हुए कहा था कि, तुम यूं ही आगे बढ़ते रहो साथ ही साथ उन्होंने अपने साहित्यिक गुरु जागेश्वर ज़ख्मी जी को याद कर उनके द्वारा कही गई बातों और प्रेरणाओं को याद किया लेकिन आज जब मेरी प्ररम कृति का प्रकाशन हुआ है,तो बाबूजी का और जागेश्वर ज़ख्मी जी का ना होना काफी खल रहा है।वही कवि रंजित तिवारी की धर्मपत्नी ने भी अपने विचारों को मुक्त रूप से सबों के सामने रखते हुए कहा कि ,मुझे विश्वास है कि मेरे श्रीमान आज पूर्णिया जनपद में अपनी काव्य कृति के लिए चर्चा बटोर रहे हैं ,भविष्य में पूरा देश इन्हें एक सशक्त कवि के तौर पर जानेगा । मौके पर आयोजको की ओर से कवि की अर्धांगिनी का सम्मान भी किया गया । कवयित्री दिव्या त्रिवेदी ने शॉल ओढाकर उनका सम्मान किया और रचनाकार प्रकाशन के स्वामी प्रियंवद जायसवाल ने पुष्प माल और पुस्तक भेंट की। पुस्तक परिचर्चा सत्र का धन्यवाद ज्ञापन पूर्णिया के युवा कवि व रंगकर्मी गोविंद कुमार ने किया। मौके पर आयोजित दूसरे सत्र में क गोष्ठी के अध्यक्षता प्रोफेसर शंभू कुशाग्र ने की तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में कवि वैदिक पाठक की मौजूदगी में दर्जन घर कवियों ने अपनी अपनी कविता का पाठ किया। कविता पढ़ने वालों में कवयित्री अंजू दास गीतांजलि, कवयित्री नीतू रानी, कवयित्री दिव्या त्रिवेदी,, युवा कवि दिनकर दीवाना, युवा कवि हरे कृष्ण प्रकाश, कवि कैलाश बिहारी चौधरी एवं बाल कवि अक्षत सौम्यन ने अपने रचनाओं से कार्यक्रम में आनंदमयी शाम का सौगात दिया ।कभी गोष्ठी के मन संचालन का दायित्व संभाला युवा कवि गोविंद कुमार ने तथा धन्यवाद ज्ञापन समापन संजय सनातन की खूबसूरत गायकी के साथ हुआ । मौके पर जितेंद्र जी अरुण कुमार एवं अन्य कई प्रबुद्ध जन उपस्थित थे ।