किशनगंज में शिक्षा के मंदिर में भ्रष्टाचार – प्राचार्य पर अभद्रता और अवैध वसूली का आरोप – कुलपति की चुप्पी पर उठे सवाल

पूर्णिया, किशन भारद्वाज: मारवाड़ी कॉलेज किशनगंज के प्राचार्य प्रो. डॉ. संजीवा कुमार एक बार फिर विवादों के घेरे में आ गए हैं। कॉलेज में नामांकन के दौरान छात्राओं और अनुसूचित जाति/जनजाति (SC/ST) वर्ग के छात्रों से की गई कथित अवैध वसूली और उनके साथ किए गए अभद्र व्यवहार को लेकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) का एक प्रतिनिधिमंडल आज पूर्णियाँ विश्वविद्यालय के कुलपति से मिला। इस प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कटिहार और किशनगंज विभाग के संयोजक अमित कुमार मंडल ने किया। प्रतिनिधिमंडल ने कुलपति के समक्ष पूरे मामले को विस्तार से रखते हुए प्राचार्य के रवैये को न सिर्फ विश्वविद्यालय की गरिमा के खिलाफ बताया, बल्कि इसे सीधे-सीधे बिहार सरकार और राजभवन द्वारा जारी छात्रहित के आदेशों की खुली अवहेलना करार दिया।

उन्होंने कहा कि इस पूरे घटनाक्रम को केवल भ्रष्टाचार या अवैध उगाही के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि यह महिलाओं और SC/ST समुदाय के छात्रों के शोषण का गंभीर मामला है। ABVP के प्रतिनिधियों ने आरोप लगाया कि प्राचार्य द्वारा किया गया यह कार्य सीमांचल के गरीब छात्रों, विशेष रूप से छात्राओं और दलित-आदिवासी समुदाय के बच्चों को शिक्षा से वंचित रखने की साजिश के तहत किया गया है। यह कदम न केवल सामाजिक न्याय के खिलाफ है, बल्कि यह शिक्षा के अधिकार और समान अवसर की मूल अवधारणा पर भी कुठाराघात है। कुलपति को कठघरे में खड़ा करते हुए ABVP ने सवाल उठाया कि जब मामला सार्वजनिक हो चुका है और वीडियो साक्ष्य भी सामने आ चुके हैं, तब तक विश्वविद्यालय प्रशासन की चुप्पी क्या इंगित करती है? क्या विश्वविद्यालय प्राचार्य को बचाने की कोशिश कर रहा है? उन्होंने मांग की कि ऐसे प्राचार्य को तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाए और एक उच्च स्तरीय जांच समिति का गठन कर निष्पक्ष जांच कराई जाए।

साथ ही दोषियों के विरुद्ध सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए ताकि भविष्य में कोई भी कॉलेज प्रमुख इस तरह के कुकृत्य का दुस्साहस न कर सके। प्रतिनिधिमंडल ने दो टूक कहा कि यदि समय रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो यह न केवल छात्रों में असंतोष को जन्म देगा, बल्कि विश्वविद्यालय की साख भी दांव पर लग जाएगी। उन्होंने स्पष्ट चेतावनी दी कि यदि न्याय में देरी हुई तो विद्यार्थी परिषद सड़क से लेकर विश्वविद्यालय तक आंदोलन करेगी। इस पूरे मामले ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या सीमांचल जैसे पिछड़े क्षेत्र के गरीब और दलित छात्र-छात्राओं के लिए शिक्षा अब भी एक सपना भर है? विश्वविद्यालय प्रशासन की भूमिका आने वाले समय में इस सवाल का जवाब तय करेगी।

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