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Vaibhav Suryavanshi: बिहार के ताजपुर से IPL तक का सफर: 14 वर्षीय वैभव सूर्यवंशी ने रचा नया इतिहास, भारतीय क्रिकेट को मिला नया उभरता सितारा*

Vaibhav Suryavanshi: बिहार के समस्तीपुर जिले के छोटे से गांव ताजपुर में 27 मार्च 2011 को जन्मे वैभव सूर्यवंशी आज भारतीय क्रिकेट में नई उम्मीद का नाम बन चुके हैं। मात्र 14 साल की उम्र में उन्होंने वो कर दिखाया है जो बड़े-बड़े दिग्गजों के लिए सपना होता है। IPL 2025 में 28 अप्रैल को गुजरात टाइटंस के खिलाफ खेलते हुए वैभव ने 35 गेंदों में 104 रनों की तूफानी पारी खेली, जिसमें 11 छक्के और 7 चौके शामिल थे। यह पारी न सिर्फ आईपीएल का दूसरा सबसे तेज शतक बनी, बल्कि उन्हें दुनिया का सबसे कम उम्र में टी20 शतक जड़ने वाला खिलाड़ी भी बना गई। लेकिन इस अद्भुत सफलता के पीछे छिपी है एक संघर्ष भरी कहानी, त्याग, समर्पण और एक पिता का सपना जो बेटे के जरिए आज सच हो रहा है। वैभव सूर्यवंशी राजपूत जाति से आते हैं। वैभव के पिता संजीव सूर्यवंशी खुद एक प्रतिभाशाली क्रिकेटर थे, लेकिन बिहार क्रिकेट संघ को वर्षों तक बीसीसीआई की मान्यता न मिलने के कारण उनका सपना अधूरा रह गया।

परिवार की आर्थिक हालत बेहतर नहीं थी और क्रिकेट छोड़कर उन्होंने जीवन यापन के लिए कई छोटे-बड़े काम किए, जिनमें कोई स्थायित्व नहीं मिला। अंततः उन्होंने पत्रकारिता को पेशा बनाया और एक स्थानीय अखबार से जुड़ गए। वैभव के जन्म के बाद जब उन्होंने बेटे में क्रिकेट के प्रति स्वाभाविक लगाव और प्रतिभा देखी, तो उन्होंने तय किया कि वह अपने अधूरे सपने को वैभव के जरिये पूरा करेंगे, चाहे इसके लिए कुछ भी कुर्बानी देनी पड़े। वैभव की ट्रेनिंग के लिए पैसे जुटाने के लिए उन्होंने गांव की पैतृक खेती की जमीन तक बेच दी — जो एक किसान परिवार के लिए सबसे कीमती पूंजी मानी जाती है। वैभव की मां भी इस सपने की मजबूत आधारशिला बनीं। उन्होंने अपने बेटे के खानपान, स्वास्थ्य और पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने दी। कई बार आर्थिक तंगी के कारण उन्होंने खुद सिर्फ 3-4 घंटे की नींद में दिन गुजारे, लेकिन बेटे के अभ्यास और घर की ज़िम्मेदारियों में कभी कोई चूक नहीं होने दी। वैभव ने 5 साल की उम्र से क्रिकेट की गेंद और बल्ला थाम लिया था। उनके पिता ने घर के पीछे खुद ही एक छोटा नेट बनवाया और कोच की तरह उन्हें रोजाना अभ्यास कराया। 8 साल की उम्र में वैभव ने जिला अंडर-16 ट्रायल में सबको चौंका दिया, और 9 साल की उम्र में समस्तीपुर की क्रिकेट अकादमी में दाखिला लेकर खेल को गंभीरता से लेना शुरू किया।

बाद में वे पटना की जेन एक्स क्रिकेट अकादमी में शामिल हुए, जहां उन्होंने पूर्व रणजी खिलाड़ी मनीष ओझा जैसे अनुभवी कोच से तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त किया। 2023 में इंडिया बी अंडर-19 टीम से अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत करने वाले वैभव ने छह मैचों में 177 रन बनाए। फिर 2024 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अंडर-19 टेस्ट में उन्होंने 58 गेंदों में शतक जड़कर तहलका मचा दिया — यह युवा टेस्ट में किसी भारतीय खिलाड़ी का सबसे तेज शतक था। उसी वर्ष, उन्होंने एसीसी अंडर-19 एशिया कप में भी शानदार प्रदर्शन करते हुए UAE और श्रीलंका के खिलाफ क्रमशः 76 और 67 रन बनाए, जिससे भारत को फाइनल में पहुँचाने में अहम योगदान दिया। जनवरी 2024 में, मात्र 12 वर्ष 284 दिन की उम्र में उन्होंने रणजी ट्रॉफी में मुंबई के खिलाफ डेब्यू किया, जिससे वे बिहार के लिए खेलने वाले दूसरे सबसे युवा और टूर्नामेंट इतिहास के चौथे सबसे युवा क्रिकेटर बने। IPL 2025 की नीलामी में जब उन्हें राजस्थान रॉयल्स ने 1.10 करोड़ रुपये में खरीदा, तो पूरा बिहार गर्व से झूम उठा। उनकी उम्र को लेकर कुछ लोगों ने सवाल उठाए, लेकिन बीसीसीआई ने उनकी जन्मतिथि और दस्तावेजों की पुष्टि कर दी, जिससे संदेह समाप्त हो गया। 20 अप्रैल 2025 को लखनऊ सुपर जायंट्स के खिलाफ आईपीएल डेब्यू में पहली ही गेंद पर उन्होंने 105 मीटर का छक्का जड़ा और 20 गेंदों में 34 रन की तेज पारी खेली। ड्रेसिंग रूम लौटते समय वे भावुक होकर रो पड़े — एक ऐसा क्षण जो दिखाता है कि सफलता के पीछे कितनी गहराई और संघर्ष छिपा होता है।

उनके कोचों के अनुसार वैभव रोजाना 600 से अधिक गेंदों का अभ्यास करते थे, और उनकी बल्लेबाजी शैली युवराज सिंह से मेल खाती है। इस सफर में बिहार क्रिकेट संघ, राष्ट्रीय अंडर-19 चयनकर्ता, राजस्थान रॉयल्स के कोच राहुल द्रविड़ और जुबिन भरूचा की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही, जिन्होंने वैभव की प्रतिभा को समय रहते पहचाना और सही मंच दिया। वैभव आज न सिर्फ बिहार का बल्कि पूरे भारत का गर्व हैं। उनका कहना है, “मेरी सफलता के पीछे मेरे माता-पिता का त्याग है। मैं देश का नाम रोशन करना चाहता हूं और भारतीय सीनियर टीम के लिए खेलना मेरा अगला लक्ष्य है।” उनकी यह कहानी हर उस परिवार और युवा के लिए प्रेरणा है, जो छोटे शहरों से बड़े सपने देखते हैं, और यह साबित करती है कि कठिनाइयों के बाद भी अगर इरादे मजबूत हों, तो कोई भी मंज़िल दूर नहीं।

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