ARARIA NEWS : कैंसर पीड़ितों से लेकर बस हादसे तक—अमृत राज ठाकुर की सामाजिक लड़ाई बनी उम्मीद की मिसाल
ARARIA NEWS,सुमन ठाकुर : फिल्म निर्देशन की दुनिया से ताल्लुक रखने वाले अमृत राज ठाकुर आज सामाजिक न्याय के संघर्ष की एक सशक्त आवाज बन चुके हैं। जहां अधिकांश लोग कैमरे के पीछे रहकर मनोरंजन की दुनिया तक सीमित रह जाते हैं, वहीं अमृत राज ने अपना कार्यक्षेत्र समाज की पीड़ा और हाशिए पर खड़े लोगों की लड़ाई तक बढ़ा दिया है। इन दिनों वे कैंसर पीड़ित जुगल ऋषिदेव के लिए इलाज की व्यवस्था में दिन-रात लगे हुए हैं, लेकिन यह पहली बार नहीं है जब उन्होंने किसी बेसहारा की आवाज़ बनकर सरकारी तंत्र की उदासीनता को चुनौती दी हो। इससे पहले, 2021 में उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में हुए दर्दनाक बस हादसे के पीड़ितों के हक़ की लड़ाई में भी वे एक मजबूती से सामने आए थे। उस हादसे में 50 से अधिक लोग मारे गए थे, जिनमें से अधिकांश बिहार के गरीब मजदूर थे। सरकारी मुआवजा घोषित होने के बावजूद बाबू लाल मंडल जैसे कई पीड़ित परिवार, गरीबी, दूरी और जानकारी के अभाव के कारण कानूनी दस्तावेजों तक नहीं पहुंच पा रहे थे।
अमृत राज को जब यह मामला पता चला, तो उन्होंने न सिर्फ पीड़ित परिवार की भावनाओं को समझा, बल्कि सीधे बाराबंकी कोतवाली नगर थाना प्रभारी को एक अत्यंत भावुक और मार्मिक पत्र लिखकर एफआईआर की प्रति उपलब्ध कराने की अपील की। उन्होंने लिखा कि “आपकी एक मदद पूरे परिवार के लिए राहत की सांस होगी और वे आपको तहेदिल से दुआएं देंगे।” यह वह उदाहरण है, जब एक आम नागरिक न होते हुए भी प्रशासन से उसी संवेदनशीलता की अपेक्षा करता है, जो लोकतंत्र की आत्मा होनी चाहिए। उनका यह पत्र उस बेआवाज़ वर्ग की आवाज़ बन गया, जिसकी पुकार अक्सर सरकार और व्यवस्था के गलियारों में दब जाती है।
चाहे वह कैंसर से जूझते गरीब मजदूर की मदद हो या सड़क दुर्घटना में मारे गए लोगों के परिवारों की पैरवी—अमृत राज ठाकुर का यह संघर्ष बताता है कि अगर एक व्यक्ति भी ठान ले, तो वह न केवल सिस्टम की खामियों को उजागर कर सकता है, बल्कि पीड़ितों के लिए एक जीवित आशा बन सकता है। वे एक ऐसे दौर में काम कर रहे हैं, जब समाज में संवेदनशीलता धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है। अमृत राज ठाकुर इस बात का प्रमाण हैं कि सच्ची सामाजिक सेवा कैमरों की चमक या बड़े मंचों से नहीं होती, बल्कि वह पीड़ित की आहट को सुनने और उसके लिए आवाज़ उठाने की ताकत में होती है। ऐसे समय में उनका संघर्ष एक प्रेरणा है, जो बताता है कि फिल्म निर्देशन से परे भी एक इंसान अपने कर्म और जज्बे से समाज को बदल सकता है।