पटना: रात करीब 11 बजे हाजीपुर की आरती रॉय को अचानक प्रसव पीड़ा हुई। डॉक्टर प्रियंका ने जांच के बाद बताया कि तुरंत ऑपरेशन करना होगा। कुछ ही मिनटों में सिजेरियन डिलीवरी हुई और आरती ने स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया। आठ दिन अस्पताल में सब कुछ सामान्य था, लेकिन आरती के भीतर एक अनकहा डर बना रहा। वे कहती हैं, “शरीर तो ठीक हो गया, लेकिन मन नहीं। नींद नहीं आती थी, बेचैनी बढ़ गई थी।”
आरती की यह कहानी मातृत्व के उस भावनात्मक पहलू को सामने लाती है, जिसे अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि सी-सेक्शन सिर्फ सर्जरी नहीं, बल्कि एक भावनात्मक यात्रा है, जिसमें समय पर परामर्श और मानसिक सहयोग बेहद जरूरी है। बिहार में एफआरयू (First Referral Unit) की संख्या एक साल में 69 से बढ़कर 106 हो गई है। लक्ष्य है कि हर एफआरयू में नियमित रूप से सुरक्षित सिजेरियन डिलीवरी हो, ताकि मातृ मृत्यु दर घटाई जा सके। एसआरएस के मुताबिक राज्य की मातृ मृत्यु अनुपात 100 है, जिसे और कम करने की दिशा में प्रयास जारी हैं।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार सी-सेक्शन की आदर्श दर 10% से अधिक नहीं होनी चाहिए, जबकि भारत में यह अब 21.5% पहुंच चुकी है। विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि अत्यधिक सर्जरी न सिर्फ आर्थिक बोझ बढ़ाती है, बल्कि माताओं के मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डालती है। एम्स पटना की डॉ. इंदिरा प्रसाद बताती हैं कि सी-सेक्शन के बाद 18% महिलाएं अवसाद से गुजरती हैं। ऐसे में परिवार और समाज की भूमिका बेहद अहम है—मां के शरीर के साथ उसके मन को भी देखभाल की जरूरत होती है।

