PURNEA NEWS: शिक्षा व्यवस्था की सच्चाई: एक साल तक नामांकन के लिए संघर्ष करती रही आदिवासी बच्ची खुशबू सोरेन
पूर्णिया: PURNEA NEWS शिक्षा का अधिकार हर बच्चे का मौलिक अधिकार है, लेकिन धमदाहा प्रखंड के टोटहा बघवा गांव की एक आदिवासी छात्रा खुशबू सोरेन को कक्षा आठवीं में नामांकन के लिए पूरे एक वर्ष तक संघर्ष करना पड़ा, जिससे शिक्षा व्यवस्था की गंभीर लापरवाही और प्रशासनिक अड़चनें उजागर होती हैं। सतमी स्थित संत बियानी स्कूल में पढ़ने वाली खुशबू की पढ़ाई सातवीं के बाद आर्थिक तंगी के कारण रुक गई। वह स्थानांतरण प्रमाण पत्र लेकर किसी सरकारी विद्यालय में दाखिला लेना चाह रही थी, परंतु नामांकन के लिए ब्लॉक और जिला शिक्षा पदाधिकारियों के हस्ताक्षर आवश्यक थे।
जब उसके माता-पिता यह प्रमाण पत्र लेकर धमदाहा प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी के पास पहुंचे, तो उनसे ₹5000 की मांग की गई और अन्य दस्तावेज भी लाने को कहा गया। असमर्थता जताने पर अधिकारियों ने उनकी एक नहीं सुनी। जब शिकायत जिला शिक्षा पदाधिकारी से की गई, तो अगली सुबह संबंधित अधिकारी स्कूल पहुंची और बच्ची के माता-पिता को सार्वजनिक रूप से अपमानित करते हुए धमकी दी कि बच्ची का कहीं भी एडमिशन नहीं होने देंगे। तीन-चार घंटे की जांच के बावजूद कोई त्रुटि न मिलने पर भी प्रमाण पत्र को फर्जी ठहराने की कोशिश की गई।
स्थिति तब बदली जब खुशबू के मामा ने पूर्णिया में रवि देव, न्यू होप सोसाइटी के एनजीओ को संपर्क किया। उनके सहयोग से खुशबू ने महामहिम राष्ट्रपति से लेकर जिला प्रशासन तक लिखित शिकायत भेजी। आखिरकार जिला कार्यक्रम पदाधिकारी के हस्तक्षेप से उसका नामांकन जगदम्बा मध्य विद्यालय, सिपाही टोला, पूर्णिया में हो सका। हालांकि इस पूरी प्रक्रिया में खुशबू का एक साल शिक्षा से वंचित रह गया। यह मामला शिक्षा विभाग की प्रणालीगत विफलता की मिसाल है, जो यह सोचने पर मजबूर करता है कि कितने और बच्चे—खासतौर पर वंचित समुदायों से—ऐसी ही बाधाओं के कारण शिक्षा से दूर हो जाते हैं। खुशबू का संघर्ष न केवल व्यक्तिगत विजय है, बल्कि यह सिस्टम की खामियों पर सवाल भी है।