पूर्णिया: कबीर भारतीय साहित्य के उन महान कवियों में से एक हैं, जिनकी वाणी आज भी जनमानस के अंतर्मन में गूंजती है। यदि तुलसीदास के बाद किसी कवि का काव्य उत्तर भारत के हिंदी भाषी क्षेत्र में सबसे अधिक लोगों की जुबान पर चढ़ा है, तो वह कबीर ही हैं। उनके दोहे, साखियाँ और पद न केवल आम जन के बीच प्रचलित हैं, बल्कि वे जीवन की सच्चाइयों को सरल भाषा में सामने रखने की अद्भुत क्षमता रखते हैं। कबीर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने जो महसूस किया, वही लिखा—बिना किसी लाग-लपेट के, बिना किसी डर के। उनकी कविताओं में जो अभिव्यक्ति का खरापन और अनुभव की सच्चाई है, वही उन्हें सबसे अलग और प्रभावशाली बनाता है।
कबीर का जन्म लगभग छह सौ वर्ष पहले हुआ था, लेकिन उनकी शिक्षाएँ आज के समय में भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं, जितनी वे तब थीं। बल्कि कहा जाए तो आज के सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में उनकी शिक्षाओं की आवश्यकता और भी अधिक महसूस की जा रही है। कबीर का युग वह समय था जब समाज में हिंदू-मुस्लिम विभाजन, मंदिर-मस्जिद के झगड़े और धर्म के नाम पर पाखंड का बोलबाला था। दुर्भाग्यवश, वही स्थिति आज भी किसी न किसी रूप में मौजूद है। धर्म आज भी राजनीति का हथियार बना हुआ है, धार्मिक उन्माद समाज को तोड़ने का काम कर रहा है और जाति-धर्म के नाम पर नफरतें फैलाई जा रही हैं। ऐसे समय में कबीर की निर्भीक और सच्ची आवाज लोगों को राह दिखाने में सक्षम है।
कबीर का काव्य किसी खास धर्म या संप्रदाय की सीमा में बंधा नहीं था। उन्होंने हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों की रूढ़ियों, कर्मकांडों और अंधविश्वासों पर कठोर प्रहार किया। उन्होंने सच्चे इंसान बनने की सीख दी, यह बताया कि ईश्वर मंदिर या मस्जिद में नहीं बल्कि इंसान के भीतर बसता है। कबीर ने समाज को यह समझाने की कोशिश की कि धर्म इंसानियत से बड़ा नहीं हो सकता। उन्होंने जात-पात, ऊंच-नीच, पाखंड और सामाजिक विषमता के विरुद्ध आवाज उठाई। उनका यह साहसी स्वर और यथार्थवादी दृष्टिकोण ही उन्हें “युगपुरुष” बनाता है।
आज जब हम चारों ओर नैतिक मूल्यों का पतन, सामाजिक विघटन और मानवीय रिश्तों में दरार देख रहे हैं, तब कबीर की वाणी एक प्रकाश स्तंभ की तरह सामने आती है। उनकी बातें आज के समाज में न केवल धार्मिक सहिष्णुता बढ़ा सकती हैं, बल्कि पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों की पुनर्स्थापना में भी सहायक हो सकती हैं। कबीर का साहित्य हमें आत्मचिंतन की प्रेरणा देता है, यह सिखाता है कि बाहरी आडंबरों से ऊपर उठकर हमें अपने भीतर झांकना चाहिए और आत्मिक विकास की ओर अग्रसर होना चाहिए।
कबीर के विचार समय से बंधे नहीं हैं—वे सार्वकालिक और सार्वभौमिक हैं। यही कारण है कि उनका साहित्य कभी अप्रासंगिक नहीं होता। साहित्य और समाचार पत्र में मुख्य अंतर यही है कि अखबार की खबरें समय बीतने के साथ ही अपना महत्व खो देती हैं, लेकिन साहित्य बार-बार पढ़ने पर भी नया अर्थ देता है, नया दृष्टिकोण प्रदान करता है। कबीर के दोहे और पद न केवल काव्यात्मक सौंदर्य से भरपूर हैं, बल्कि उनमें जीवन के गूढ़ सत्य छिपे हैं, जो हर युग में प्रासंगिक रहते हैं।
आज जब समाज में तथाकथित समाज सुधारक भी धार्मिक कट्टरता के विरुद्ध खुलकर बोलने का साहस नहीं जुटा पाते, तब हमें कबीर की निर्भीकता याद आती है। उन्होंने निडर होकर अनीति, अन्याय, रूढ़ियों और सामाजिक विसंगतियों के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद की थी। वे किसी से डरते नहीं थे, किसी के प्रभाव में नहीं आते थे। उन्होंने हमेशा सत्य का साथ दिया और उसे निर्भीकता से व्यक्त किया। यही कारण है कि उनका काव्य आज भी लोगों को उतना ही प्रभावित करता है जितना छह सौ वर्ष पहले करता था।
इसलिए आज के इस तनावग्रस्त, विघटित और भ्रमित समाज में कबीर की शिक्षाएं, उनकी वाणी और उनके विचार अत्यंत आवश्यक हैं। वे हमें यह सिखाते हैं कि सच्चा धर्म वही है जिसमें प्रेम, करुणा, समता और सहिष्णुता हो। कबीर केवल एक कवि नहीं, बल्कि एक चेतना हैं—एक आंदोलन हैं—जो न तब रुका था, न अब रुका है, और न कभी रुकेगा। वे कल भी प्रासंगिक थे, आज भी हैं और आने वाले युगों में भी रहेंगे।