नई दिल्ली: Rupee Vs Dollar भारतीय रुपये ने बुधवार को अमेरिकी डॉलर के सामने पहली बार इतिहास के सबसे निचले पायदान पर कदम रखा, जब यह 90 के मनोवैज्ञानिक बैरियर को चीरते हुए 90.14 के रिकॉर्ड निम्न स्तर पर धराशायी हो गया, जो न केवल करेंसी मार्केट में भूचाल ला रहा है बल्कि भारत की संरचनात्मक आर्थिक दरकिनारों को भी नंगा कर रहा है, जहां 2025 में 5.3 प्रतिशत की भयावह सालाना गिरावट के पीछे विदेशी संस्थागत निवेशकों का रक्तपात सा बहिर्वाह, आयातकों की डॉलर पर बेतहाशा भूख, भारत-अमेरिका व्यापार सौदे की लंबी ठहराव वाली अनिश्चितता और ट्रंप प्रशासन के 50 प्रतिशत आयात टैरिफ की काली छाया ने निर्यात को गला घोंट दिया, जिसके चलते अक्टूबर में 41.7 अरब डॉलर का चरम व्यापार घाटा उभरा और वर्तमान खाता घाटा जीडीपी के 1.2 प्रतिशत तक फैलने का भयावह खतरा लटक रहा है।
यह संकट महज आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि भारत की गहरी कमजोरियों का कड़वा आईना है – जहां 80 प्रतिशत से अधिक कच्चे तेल की आयात पर अंधी निर्भरता, सोने-चांदी जैसी कीमती धातुओं पर बढ़ती लालसा, वैश्विक बाजारों में निर्यात की फीकी प्रतिस्पर्धा और भू-राजनीतिक तनावों ने मिलकर विदेशी मुद्रा भंडार को चूना लगा दिया, जबकि आरबीआई की डॉलर बिक्री वाली हस्तक्षेप के बावजूद 91.30 तक और लुढ़कने की आशंका ने निवेशकों में अफरा-तफरी मचा दी है, जो पेट्रोल-डीजल से लेकर रोजमर्रा की वस्तुओं तक महंगाई की तूफान को भड़काकर आम आदमी की जेब पर करारा प्रहार करेगी, अर्थव्यवस्था को गहरी खाई में धकेलते हुए।

