SAHARSA NEWS,अजय कुमार : शहर के पर्यटन स्थल मत्स्यगंधा के उत्तरी छोर पर स्थित वैदेही कला संग्रहालय द्वारा अंतरराष्ट्रीय सग्रहालय दिवस की श्रृंखला कार्यक्रम में भारतीय ज्ञान परम्परा में संग्रहालय विषय पर रविवार को वेबनार का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता के रूप में संस्कृति एवं संग्रहालय विद प्रोफेसर ओम प्रकाश भारती ने कहा संग्रहालय पूर्वजों की स्मृतियों और ज्ञान का खजाना तथा हमारी परंपराओं का भविष्य है।भारत की प्रवृत्ति संचयन की रही है।पश्चिम का दावा है कि संग्रहालय अंग्रेजी में म्युजियम का विकास सबसे पहले यूनान में हुआ।संग्रहालय एक सामाजिक संस्थान है जो कलात्मक,सांस्कृतिक,नया वैज्ञानिक महत्व की कृतियों और अन्य वस्तुओं के संग्रह की देखभाल और प्रदर्शन करता है।भारतीय सन्दर्भ में देखें तो ईसा से हजार वर्ष पूर्व भीमबेटका में मानव निर्मित चित्रों को प्रदर्शित किया गया है।ये चित्र गहरे लाल रंगों से इस तरह उकेरे गए हैं। जैसे उस समय के मानव इसे देखने आते थे।आज भी इन चित्रों की झलक भील और गोंड चित्रों में देखे जा सकते हैं।भारतीय ज्ञान परम्परा के अनुरूप इसे विश्व का प्रमथ संग्रहालय कहा जा सकता है।सिंधु घाटी सभ्यता में हमें अन्य समकालिक सभ्यताओं की कलाकृतियों की प्राप्ति से यह लक्षित होता है कि कलाप्रेमी सिन्धुवासी इन कलाकृतियों को घरों में सजाते और संरक्षित करते थे। निश्चय ही इन सभी कलाकृतियों को नगर स्तर भी संरक्षित और प्रदर्शित किया जाता होगा। पुरातत्ववेत्ता के लिए ऐसे स्थलों को चिन्हित किया जाना शेष है। रामायण और महाभारत में हमें राजकीय तथा जन चित्रशालाओं का उल्लेख प्राप्त होता है। रामायण में दशरथ और रावण के महलों में उनके पूर्वजों, देवताओं तथा ग्रंथों को संगृहीत करने का उल्लेख प्राप्त होता है। नवसाहसांक चरित में जलकीड़ा, पानगोष्ठी, रासलीला आदि के चित्रों के सजाने का वर्णन है। इनके अतिरिक्त हमारे संस्कृत ग्रंथों में संकटों पर घूमने वाली चित्र शालाओं का उल्लेख है। विद्यामन्दिरों में भी सरस्वती, यमलोक के आलेखन का उल्लेख है। सुतिका गृहों को भी चित्रों से सजाया जाता था। ये सभी चित्रगृह विनोद स्थान तथा कला स्थान होते थे। जिनकी उपयोगिता नागरिकों लिए होता था। इनमें चित्रों के साथ-साथ मूर्तियां और कला सामग्रियां भी प्रदर्शित की जाती थी। भवभूति ने ‘वीथी’ का उल्लेख किया है। नालंदा और विक्रमशिला 5 वीं सदी विश्वविद्यालय में विशाल पुस्तकालय और पांडुलिपि भवन हुआ करता था। केरल के ‘कृथामलंब’ नौवीं सदी से कला वस्तुओं को संरक्षित करने की परम्परा है। असम के सत्रों में सोलहवीं सदी से कला वस्तुओं को संरक्षित रखा गया है। इस तरह भारतीय ज्ञान परम्परा के अनुसार भारत में संग्रहालय की प्राचीनतम परम्परा है। आवश्यकता है इस विषय को लेकर गहन शोध हो और इसे प्रकाश में लाया जाय। अन्य वक्ताओं में डॉ भाग्यश्री राउत, शोधार्थी आरती कुमारी तथा दीपक यादव संग्रहालय संरक्षण और प्रबंधन विश्व पर शोध पत्र प्रस्तुत किया। राहुल यादव ने कार्यक्रम का संचालन तथा डॉ. महेंद्र कुमार ने धन्यवाद ज्ञापन किया।