SAHARSA NEWS : गायत्री शक्तिपीठ में व्यक्तित्व परिष्कार सत्र आयोजित

SAHARSA NEWS, अजय कुमार : गायत्री शक्तिपीठ में रविवार को साप्ताहिक कार्यक्रम के रूप में व्यक्तित्व परिष्कार सत्र आयोजित किया गया।व्यक्तित्व परिष्कार सत्र को संबोधित करते हुए डाक्टर अरुण कुमार जायसवाल ने संस्कार और भक्ति के संबंध मे बताते हुए कहा-संस्कार और प्रारब्ध आपके जीवन में एक तूफान की तरह आता है। संस्कार का वेग, प्रारब्ध का वेग सब कुछ उलट पुलट कर देता है। संस्कार साधारण घटना नहीं होती है। संस्कार मतलब संबंध और प्रारब्ध का मतलब भोग भावनाएँ जब किसी से जुड़ती है और लंबे समय बाद वह संस्कार बन जाता है। संस्कार है प्रगाढ़ राग और प्रगाढ़ द्वेष, इन दोनों से जो अभिनिवेश बनता है यानी कि उसमें जो जड़ता होती है स्थिरता होती है, वो अटका देती है। जिस तरह हम छत का निर्माण करते हैं तो बिना छड़ यानी सरिया के छत स्थिर नहीं रह सकता, उसी तरह संस्कार आपके कर्म को स्थिरता देता है, अटका देता है, प्रारब्ध में परिवर्तित कर देता है। भगवान राम का संस्कार जगा तो उन्हें वनवास पहुंचा दिया। हालांकि भगवान राम के संस्कार का अर्थ था। भगवान ने जो वरदान दिया मनु और शतरूपा को, वो संस्कार था। मनु और शतरूपा जब तपस्या कर रहे थे तो अगणित बार इन्द्र आए, अगणित बार ब्रह्मा विष्णु शिव आए वरदान देने के लिए लेकिन उन्होंने आंखें नहीं खोली। प्रणाम किया और आँखें बंद कर ली। जब स्वयं सच्चिदानंद परमात्मा उनके सामने प्रकट हुए, तब दोनों ने वरदान मांगा, मनु ने तो वरदान मांगा कि आप हमारे यहाँ पुत्र बनकर आयें, लेकिन शतरूपा ने जो वरदान मांगा कि भगवान जो आपके भक्तों की जीवन शैली है, वैसे हम रहें यानी हमारा विवेक चंचल न हो, मतलब अंदर से भी वही रहें और बाहर से भी वही रहें।

बस इतनी कृपा कर दें। भगवान ने उन्हें अलौकिक विवेक दिया, यही पतंजलि के शब्दों में विवेकख्याति है। फिर वही दशरथ और कौशल्या के यहाँ वरदान स्वरूप भगवान राम पुत्र बनकर जन्म लिए, वही संस्कार बना। आप सोच सकते हैं कि भगवान वरदान देकर फंस जाते हैं, नहीं, भगवान का भक्त के लिए प्रेम है, उस प्रेम के सूत्र में आबद्ध रहते है, बंधे रहते है। भक्त का प्रेम उनको बांध लेता है। भगवान में तो प्रेम होता है और हम लोगों के मन में होती है आसक्ति । आसक्ति की सारी डोर अहंकार से जुड़ी होती है और प्रेम की सारी डोर आत्मा से जुड़ी होती है। प्रेम जिससे हो और जिसको हो, दोनों का परम कल्याण करता है।लेकिन भक्ति में क्या होता है? भक्त के जीवन में राग भी भगवान है और द्वेष भी भगवान है। झगड़ा भी भगवान से है और प्रेम भी भगवान से है। तारापीठ में बामाखेपा रहते थे और तारा माँ से झगड़ा करते थे, डंडा मार देते थे। कभी कभी तारा माँ मूर्ति से निकलकर बामाखेपा की पिटाई भी कर देती थी तो बामाखेपा कहते थे दुष्टा नालायक, तू अपने को माँ कहती और मारती है और कभी कभी वो माँ को पीट देते थे फिर माँ और बेटे दोनों एक हो जाते थे। कहने का अर्थ है जब भावनाओं का हर कोण भगवान से जुड़ जाता है न, तो ऐसा संस्कार बन जाता है फिर वो आपको उसके साथ ही रखता है। भक्ति का मतलब भावनाओं का संपूर्ण और परिपूर्ण और अर्पण। अगर भावनाएँ मजबूत है और सच्ची है और भगवान के लिए है तो बड़े से बड़े प्रारब्ध को क्षतिग्रस्त करने में, धराशायी करने में सक्षम है।इससे पूर्व गायत्री शक्तिपीठ में होली पर्व एवं होलिका दहन कार्यक्रम पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया गया ।होली पर्व के महत्व को बताते हुए डाक्टर अरुण कुमार जायसवाल ने कहा-दारुण रात्रि को खुशी की रात्रि में बदलना हीं होली पर्व का मूल संदेश है।एकता,समता,उल्लास और भाईचारे का पर्व है।दुश्मनी को दोस्ती मे बदलने का पर्व है।बुराई स्वार्थ और अहंकार को इस पर्व में जलाते हैं ,तभी हमारा पर्व मनाना सार्थक होगा। इस अवसर पर बाल संस्कारशाला के बच्चों द्वारा संगीतमय नाटिका का मंचन किया गया,इसके बोल थे-भ्रम
के भटकावे छोड़ो। कुछ काम प्रभु का करलो, तथा मधुर भावों को व्यक्त करते हुए भाव विभोर नृत्य का कार्यक्रम हुआ।इस अवसर पर भगवान नरसिंह का पूजन विधि-विधान से हुआ। तथा-रज मिट्टी का पूजन हुआ। शक्तिपीठ के सभी परिजन पूजन में भाग लिए।भगवान नरसिंह कापूजन मनीषा,श्रुति और स्वर्णा करवाई।इस अवसर पर डाक्टर अरुण कुमार जायसवाल के मित्र एवं अतिथिगण-संतोष दत्ता,प्रोफेसर गौतम उनकी पत्नी भारती देवी, अवकाश प्राप्त राॅव के राकेश, डाक्टर सी एम चौधरी तथा न्यायाधीश शशांक उपस्थित थे।

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