Purnia News
पूर्णिया

जातीय जनगणना पर सरकार झुकी, अब तिथि स्पष्ट करे: पूर्णिया कांग्रेस का संयुक्त बयान

पूर्णिया: देश में जातिगत जनगणना को लेकर कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में हुए जनदबाव का असर अब स्पष्ट दिखने लगा है। पूर्णिया जिला कांग्रेस अध्यक्ष बिजेंद्र यादव, पूर्व अध्यक्ष नीरज सिंह, रंजन सिंह, आश नारायण चौधरी, जवाहर किशोर उर्फ रिंकू यादव, जयवर्धन सिंह, गौतम वर्मा, मोहम्मद अलीमुद्दीन, नीरज यादव एवं युवा नेता शेख़ सद्दाम ने संयुक्त रूप से बयान जारी कर केंद्र सरकार से यह मांग की है कि अब सरकार जल्द से जल्द जातीय जनगणना की तिथि और प्रक्रिया को सार्वजनिक करे। नेताओं ने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने हमेशा आम जनता से जुड़े मुद्दे—जैसे बेरोज़गारी, महंगाई, शिक्षा, स्वास्थ्य और किसानों की समस्याओं को मजबूती से उठाया है। मोदी सरकार को लगातार कटघरे में खड़ा किया है।

संसद हो या सड़क, राहुल गांधी की अगुवाई में कांग्रेस ने जातीय जनगणना को आम जन की जरूरत बताया और इसके लिए सरकार को झुकने को मजबूर किया। जातिगत जनगणना के संभावित फायदे:1. सटीक नीति निर्धारण: सरकार को यह स्पष्ट जानकारी मिलेगी कि किस जाति-वर्ग की आबादी कितनी है और किन वर्गों को वास्तविक रूप से योजनाओं की जरूरत है।2. संसाधनों का न्यायसंगत बंटवारा: बजट, योजनाओं और आरक्षण में आंकड़ों के आधार पर निर्णय लेना संभव होगा।3. हाशिए पर मौजूद समाज को पहचान: जिन जातियों की दशा अब तक सरकारी डेटा में अनदेखी रह गई है, उन्हें मुख्यधारा में लाने का मौका मिलेगा।4. राजनीतिक जागरूकता बढ़ेगी: जनगणना से उत्पन्न आंकड़े सामाजिक व राजनीतिक संवाद को नई दिशा देंगे। 1. सामाजिक विभाजन की आशंका: कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि जातिगत आंकड़े समाज में खाई और टकराव को बढ़ा सकते हैं।2. राजनीति का जातिकरण: चुनावी राजनीति में जातियों के आंकड़े को हथियार बनाकर वोट बैंक की राजनीति तेज़ हो सकती है।3. धार्मिक और जातीय असंतुलन: कुछ समुदायों को लग सकता है कि उनके साथ भेदभाव हो रहा है या उनकी आबादी को गलत दिखाया जा रहा है।

4. प्रशासनिक जटिलता और खर्च: इस तरह की गणना कराने में काफी संसाधन और तकनीकी सावधानी की आवश्यकता होगी, जिससे प्रक्रिया लंबी और खर्चीली हो सकती है। पूर्णिया कांग्रेस ने केंद्र सरकार से यह भी कहा कि अब जब जातीय जनगणना की सैद्धांतिक सहमति मिल चुकी है, तो जनता को यह बताया जाए कि कब और किस प्रक्रिया के तहत यह जनगणना कराई जाएगी। “कहीं ऐसा न हो कि सिर्फ घोषणा कर चुनावी लाभ लिया जाए और फिर उसे टाल दिया जाए,” नेताओं ने आगाह किया। जातिगत जनगणना एक ओर जहां समाज में समावेश और समानता का द्वार खोल सकती है, वहीं इसके राजनीतिक और सामाजिक प्रभावों पर भी निगरानी जरूरी है। अब नज़र इस बात पर है कि सरकार इसकी प्रक्रिया और तारीख पर कब और क्या निर्णय लेती है।

LEAVE A RESPONSE

Your email address will not be published. Required fields are marked *