DELHI NEWS : ड्रोन ने बदला जंग का तरीका: भारत ने पहली बार कारगिल युद्ध में किया था ड्रोन का इस्तेमाल
DELHI NEWS : आधुनिक युद्ध में ड्रोन एक गेमचेंजर साबित हुए हैं, लेकिन भारत ने इसकी क्षमता को बहुत पहले ही पहचान लिया था। भारतीय सेना ने पहली बार मानव रहित हवाई वाहनों (UAVs) का इस्तेमाल 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान किया था।
उस समय, भारतीय वायुसेना के पायलटों को दुश्मन की स्थिति का पता लगाने के लिए खतरनाक जासूसी मिशन पर जाना पड़ता था, जिसमें काफी जोखिम होता था। इसी आवश्यकता को पूरा करने के लिए, भारत ने इजराइल से ‘सर्चर’ और ‘हेरॉन’ जैसे टोही ड्रोन प्राप्त किए थे। इन ड्रोनों ने नियंत्रण रेखा (LoC) पर दुश्मन की गतिविधियों और उनकी स्थिति का पता लगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिससे भारतीय तोपखाने को सटीक निशाना लगाने में मदद मिली थी।
कारगिल युद्ध के बाद, भारत ने ड्रोन तकनीक की अहमियत को पूरी तरह से समझा और अपने ड्रोन बेड़े को लगातार मजबूत किया है। 2002 में, भारत ने इजराइल से ‘सर्चर Mk II’ और ‘हेरॉन’ ड्रोन खरीदे। इसके बाद ‘हार्पी’ ड्रोन भी खरीदा, जो दुश्मन के रडार को नष्ट करने वाला एक आत्मघाती ड्रोन है। हाल ही में, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे अभियानों में भी ‘हारॉप’ ड्रोन का इस्तेमाल दुश्मन के रडार और संचार प्रणालियों को तबाह करने के लिए किया गया है।
आज, भारतीय सेना के पास विभिन्न प्रकार के ड्रोन हैं, जिनमें निगरानी, टोही और हमले के लिए इस्तेमाल होने वाले ड्रोन शामिल हैं। भारत स्वदेशी रूप से ‘निशांत’, ‘रुस्तम’ और ‘तपस-BH-201’ जैसे ड्रोन भी विकसित कर रहा है। इसके अलावा, अमेरिका से 31 MQ-9B ‘प्रीडेटर’ ड्रोन की खरीद भी जारी है, जो भारतीय सेना की क्षमताओं को और बढ़ाएगी।
ड्रोन अब केवल जासूसी तक सीमित नहीं हैं, बल्कि सटीक हमले, डेटा संग्रह और आपदा राहत जैसे कई क्षेत्रों में उपयोग किए जा रहे हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध और हाल ही में भारत-पाकिस्तान के बीच हुई झड़पों में भी ड्रोन ने युद्ध की रणनीति को पूरी तरह से बदल दिया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भविष्य के युद्धों में इनकी भूमिका और भी महत्वपूर्ण होगी।