नई दिल्ली

NEW DELHI : इलाहाबाद हाई कोर्ट का विवादित फैसला: बच्ची के साथ छेड़छाड़ को रेप नहीं माना, सुप्रीम कोर्ट से दखल की माँग तेज़ ⚖️

NEW DELHI : इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक ताज़ा फैसले ने पूरे देश में हलचल मचा दी है। कोर्ट ने एक नाबालिग बच्ची के निजी अंगों को पकड़ने और उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ने की घटना को बलात्कार की कोशिश नहीं माना है। इस फैसले ने न केवल कानूनी हलकों में बहस छेड़ दी है, बल्कि आम जनता और महिला संगठनों में भी आक्रोश पैदा कर दिया है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह फैसला पॉक्सो एक्ट (Protection of Children from Sexual Offences Act) की मूल भावना के खिलाफ है? और क्या सुप्रीम कोर्ट इस मामले में हस्तक्षेप करेगा?

घटना का पूरा ब्यौरा: कासगंज का मामला

यह मामला उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले से जुड़ा है। यहाँ एक व्यक्ति पर आरोप था कि उसने एक नाबालिग लड़की के साथ छेड़छाड़ की। पीड़िता के परिवार के अनुसार, आरोपी ने बच्ची के सीने को दबाया, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ा और उसके निजी अंगों को छूने की कोशिश की। स्थानीय पुलिस ने इसे गंभीर अपराध मानते हुए IPC की धारा 376 (बलात्कार) और पॉक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज किया था। निचली अदालत ने भी आरोपी को दोषी ठहराया था। लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपील के दौरान जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने इस मामले को अलग नज़रिए से देखा।

जस्टिस मिश्रा ने अपने फैसले में कहा, “इस घटना में प्रवेश (penetration) का कोई सबूत नहीं है, जो बलात्कार की कानूनी परिभाषा के लिए अनिवार्य है। यह कृत्य यौन उत्पीड़न तो है, लेकिन तकनीकी रूप से बलात्कार की कोशिश नहीं माना जा सकता।” कोर्ट ने इस अपराध को IPC की धारा 354B (महिला को निर्वस्त्र करने का इरादा) और पॉक्सो एक्ट की धारा 9 व 10 (गंभीर यौन उत्पीड़न) के तहत वर्गीकृत किया।

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