पटना: Better Health स्तनपान बढ़ाने और माताओं के बीच जागरूकता फैलाने के सरकार के निरंतर प्रयासों ने देश को गर्व का विषय दिया है। वर्ल्ड ब्रैस्टफीडिंग ट्रेंड्स इनिशिएटिव की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने स्तनपान की वैश्विक रैंकिंग में 79वें स्थान से कूदकर 41वें स्थान पर जगह बना ली है, जो 38 स्थानों की बड़ी छलांग है। इस उपलब्धि का बिहार में भी सकारात्मक असर दिख रहा है, जहां राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 में जन्म के पहले घंटे में स्तनपान की दर 23.5 प्रतिशत थी, जो राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 में बढ़कर 26.4 प्रतिशत हो गई है। साथ ही छह महीने तक विशेष स्तनपान की दर भी 53.5 प्रतिशत से बढ़कर 63.3 प्रतिशत हो गई है।
हालांकि शहरी क्षेत्रों में ‘अर्बन ब्रेस्टफीडिंग गैप’ अब भी एक बड़ी चुनौती है। नौकरीपेशा माताओं को कार्यालयों में स्तनपान कराने के लिए सुविधाजनक कक्ष की कमी होती है, जिससे वे स्तनपान में कठिनाइयों का सामना करती हैं। वहीं, मलिन बस्तियों में रहने वाली महिलाओं को घर से काम तक जाना पड़ता है, जिससे वे पूर्ण स्तनपान नहीं करा पातीं और शिशु को बोतल का दूध या अन्य पूरक आहार पर निर्भर रहना पड़ता है। विशेषज्ञों के अनुसार, जन्म के बाद छह महीने तक केवल स्तनपान ही नवजात के लिए सर्वोत्तम पोषण है, जिसमें पानी सहित किसी अन्य आहार की आवश्यकता नहीं होती।
एम्स पटना की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. इंदिरा प्रसाद ने बताया कि स्तनपान से नवजात की रोग-प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है और वह डायरिया, निमोनिया जैसे संक्रमणों से बचा रहता है। इसी दृष्टिकोण से बिहार स्वास्थ्य विभाग ने सभी सरकारी अस्पतालों में जन्म के पहले घंटे में स्तनपान सुनिश्चित करने के लिए स्तनपान कक्ष स्थापित किए हैं और जल्द ही सभी सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों को “बोतल मुक्त परिसर” घोषित किया जाएगा। साथ ही, “विश्व स्तनपान सप्ताह” के दौरान प्रदेश में स्तनपान के फायदों को लेकर व्यापक जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है, ताकि माताओं को स्तनपान के महत्व से अवगत कराया जा सके और नवजात स्वास्थ्य में सुधार हो।

