♦ प्रतिनिधि, नई दिल्ली: Jallianwala Bagh Massacre 13 अप्रैल 1919 का दिन भारतीय इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है, जब जलियांवाला बाग, अमृतसर में ब्रिटिश सेना ने निहत्थे और मासूम लोगों पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाकर हजारों की संख्या में भारतीयों की जान ले ली। यह दिन स्वतंत्रता संग्राम के सबसे काले पलों में से एक था, जब ब्रिटिश साम्राज्य की क्रूरता ने भारतीय जनता के धैर्य और सहनशीलता की परीक्षा ली। रॉलेट एक्ट के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे लोगों पर ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड डायर ने बिना चेतावनी के 1650 राउंड गोलियां चलाईं, जिससे सैकड़ों लोग शहीद हो गए। यह घटना ब्रिटिश शासन की अमानवीयता और दमनकारी नीतियों का प्रतीक बन गई, और आज भी उस खून से सनी हुई भूमि पर खड़ा जलियांवाला बाग हमें हमारे स्वतंत्रता संग्राम की कुर्बानियों की याद दिलाता है।
ब्रिटिश सरकार के आंकड़ों के अनुसार, इस हत्याकांड में 379 लोग मारे गए, लेकिन भारतीय नेताओं और चश्मदीदों के अनुसार यह संख्या 1000 से भी ज्यादा थी। इस भयावह घटना के बाद, महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की और भारतीय जनता ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ अपने संघर्ष को और तेज किया। जलियांवाला बाग के शहीदों को सम्मान देने के लिए रवींद्रनाथ टैगोर ने अपनी नाइटहुड की उपाधि लौटा दी और इस घटना के खिलाफ पूरे देश में विरोध प्रदर्शन तेज हो गए। जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा मिली और इस घटना ने देशवासियों में अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष की एक नई लहर पैदा की। 1951 में जलियांवाला बाग को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया, और आज भी वहां पर गोलियों के निशान, शहीद कुआं और शहीद स्तंभ खड़े हैं, जो उन निर्दोष लोगों की कुर्बानी और संघर्ष की याद दिलाते हैं।
13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में हुई इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत अब चुप नहीं बैठेगा। उस दिन के शहीदों ने अपनी जान दी, ताकि आने वाली पीढ़ियां आज़ाद भारत में जी सकें। आज जब हम आज़ाद भारत में सांस ले रहे हैं, तो हमें उन शहीदों की कुर्बानी को याद करते हुए अपने स्वतंत्रता संग्राम को सलाम करना चाहिए। जलियांवाला बाग की वह खून से सनी भूमि हमें यह याद दिलाती है कि स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए कितने बलिदान दिए गए। इस दिन को याद करते हुए हम उन शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और यह संकल्प लेते हैं कि हम उनके आदर्शों और बलिदानों को कभी नहीं भूलेंगे।