NEW DELHI : पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार, 7 अप्रैल 2025 को कोलकाता के नेताजी इंडोर स्टेडियम में उन शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों से मुलाकात की, जिनकी नौकरियां सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बाद रद्द हो गईं। यह फैसला 2016 की पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग (WBSSC) भर्ती प्रक्रिया में अनियमितताओं के चलते आया, जिसमें 25,753 शिक्षकों और कर्मचारियों की नियुक्तियां अवैध करार दी गईं। इस मुलाकात के दौरान ममता बनर्जी ने भावुक अंदाज में कहा, “मुझे चाहे जेल हो जाए, मैं आपकी नौकरी के लिए लड़ती रहूंगी। जब तक मैं जिंदा हूं, किसी की नौकरी नहीं छिनने दूंगी।” ममता ने शिक्षकों को भरोसा दिलाया कि वह उनके साथ खड़ी हैं और उनकी गरिमा को बहाल करने के लिए हर संभव कोशिश करेंगी। उन्होंने कहा, “यह सिर्फ 25,000 लोगों की बात नहीं है, यह उनके परिवारों का भी सवाल है। शिक्षा व्यवस्था को नष्ट करने की साजिश चल रही है। अगर कुछ लोग गलत हैं, तो सबको सजा क्यों?” मुख्यमंत्री ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हुए भी इस पर मानवीय आधार पर असहमति जताई और कहा कि वह इस मामले को लेकर कानूनी लड़ाई जारी रखेंगी।
उन्होंने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा, “पश्चिम बंगाल के पूर्व शिक्षा मंत्री जेल में हैं, लेकिन मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले में बीजेपी के कितने नेता जेल गए?” ममता ने यह भी ऐलान किया कि उनकी सरकार शिक्षकों के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट में मजबूती से पैरवी करेगी, जिसमें वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी जैसे बड़े नाम शामिल होंगे। इस मुलाकात में शिक्षक भी भावुक नजर आए। कई ने ममता से अपनी पीड़ा साझा की और कहा कि वे बेकसूर हैं, फिर भी उन्हें सजा मिल रही है। ममता के इस बयान ने सोशल मीडिया पर भी हलचल मचा दी है, जहां उनके समर्थकों ने इसे उनकी संवेदनशीलता और नौकरीपेशा लोगों के प्रति प्रतिबद्धता का सबूत बताया, वहीं विपक्ष ने इसे नाटक करार दिया। इस घटना ने पश्चिम बंगाल में शिक्षा और राजनीति के बीच एक नए विवाद को जन्म दे दिया है।
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