SAHARSA NEWS,अजय कुमार : विनोबा आश्रम सहरसा में 18 मार्च क्रांति दिवस के मौके पर लोकनायक जयप्रकाश नारायण को याद किया गया। पूर्व प्रमुख सियाराम सिंह की अध्यक्षता एवं सुरेन्द्र सिंह के संचालन में आयोजित इस कार्यक्रम में वक्ताओं ने कहा कि इसी दिन 1974 को बिहार में तत्कालीन कांग्रेस की सरकार के मुख्य मंत्री ने पटना में छात्रों द्वारा आयोजित मंहगाई, भ्रष्ट्राचार आदि के विरोध में विधान सभा के आगे प्रतिकार कर रहे थे।अपनी निरंकुश तानाशाही का परिचय देकर निर्दोष छात्रों पर गोली चलाया। इस निन्दनीय घटना के बाद 19 मार्च को पूरे बिहार में छात्रों द्वारा आक्रोश मार्च निकाला गया। इंदिरा गांधी के खिलाफ यह आन्दोलन पुरे देश में जन आन्दोलन का रूप लिया। जिसमें नारा था “हमला चाहे जैसा होगा, हाथ हमारा नही उठेगा”। लेकिन अहिंसक आंदोलन को भी दबाने की कोशिश की गई। पटना में
ऐतिहासिक रैली हुई जिसमें लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने नारा दिया कि” सिंहासन खाली करो कि जनता आती है”।
लेकिन संविधान में संशोधन कर 25 जून 1975 को मध्यरात्रि में देश में आपातकाल लगाकर देश की जनता के मौलिक अधिकार को समाप्त करने का प्रयास किया गया। इस आंदोलन में सैकड़ो छात्रों ने अपनी शहादत थी और देश भर में चले इस आंदोलन का नेतृत्व बिहार ने किया। भूपेंद्र प्रियदर्शी ने कहा कि नेपाल में एक शिविर चल रहा था जहां कर्पूरी ठाकुर और परमेश्वर कुंवर भी पहुंचे थे। कर्पूरी ठाकुर बाहर निकले तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। छात्र आक्रोशित हुए और पुलिस को खदेड़ा। उनकी गिरफ्तारी सुपौल में हुई,जगह नहीं रहने के कारण भागलपुर जेल भेजा गया। अनिल कुमार गुप्ता ने भी बताया कि उन लोगों ने आंदोलन को कैसे गति दी। उन्होंने कहा कि यह विनोबा आश्रम भी संपूर्णक्रांति के दौरान आंदोलन का केंद्र था। सुरेन्द्र भाई, कलानंद मणी, महादेव विद्रोही, तपेश्वर सिंह, आदि कई लोगों का जिक्र किया। अरविन्द कुमार झा ने बताया कि उस समय सरकार के खिलाफ पर्चा, खुला पत्र आदि रात में उनके प्रेस में छपता था। उनके पिताजी बैद्यनाथ झा को पटना में विद्याकर कवि के यहां गिरफ्तार किया गया। इस मौके पर महेंद्र गुप्ता, कृष्ण मुरारी प्रसाद, वशिष्ठ देव, श्याम किशोर सिंह पथिक आदि ने भी संपूर्ण क्रांति के आंदोलन पर चर्चा किया, खासकर कोशी क्षेत्र में हुए आंदोलन की। वक्ताओं ने कहा कि लोक नायक जयप्रकाश नारायण ने सहरसा कॉलेज में भी एक सभा कर लोगों का आह्वान इस आंदोलन में शामिल होने के लिए किया था। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत दिनकर की एक कविता से किया था।
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