पूर्णिया, अभय कुमार सिंह: PURNIA NEWS प्रखंड में किसानों की पीडा पर खीरा फसल मरहम लगानेवाली है, यद्यपि इसमें कीट-व्याधि के ज्यादा लगने से किसानों पर अधिक बोझ बढने की भी उम्मीद है। इस वर्ष खीरा 1300 रूपये की दर से खेतों में ही बिकने की शुरूआत हुई, जो अब उडान भरते हुए 1500 रूपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गयी है। यद्यपि अभी भरपूर फसल का उत्पादन अगले एक-दो सप्ताह बाद ही होने की उम्मीद की जा रही है। सबसे बडी बात है कि खीरा बेचने में कोई कठिनाई नहीं होती है, किसान अपना खीरा तोडकर सडक किनारे पहुंचा देते हैं, वहां से वह वाहनों पर लोड होकर चले जाते है। व्यापारियों की भी कोई कमी नहीं रहती है। लगभग नगद ही विक्री होती है। यह बता दें कि प्रखंड का तेलडीहा गांव सब्जी उत्पादन का हब बनता जा रहा है। इसके आसपास के गांव गोडियर , शिशवा, तीनटंगा, हरनाहा, मेंहदी, धूसर, गोखलीटोला आदि गांव भी केंदित हैं।
यहां के किसान अब प्रायः सब्जी की खेती की ओर अग्रसर होने लगे हैं, इसमें एक तो समय कम लगता है, दूसरी ओर लागत से कई गुणा ज्यादा आमदनी की उम्मीद रहती है। यहां अभी बडे पैमाने पर खीरा की खेती हो रही है। यद्यपि इसमें काफी खर्च भी होती है। एक बीघा खीरा उपजाने में किसानों को लगभग 80 हजार रूपये की लागत आती है। अगर वर्तमान में जो खीरा का रेट चल रहा है, अगर यह रेट टिका रहा, तो इसमें कोई शक नहीं कि यहां के किसानों को तीन से साढे तीन लाख रूपये की आमदनी प्रति बीघा के अनुसार से कम नहीं होगी। खीरा की बुआई आलू की साठ दिनों की फसल लगाने के बाद जनवरी के दूसरे सप्ताह में लगती है। इस फसल का उत्पादन 60 से 70 दिनों के बीच तैयार होने लगती है, जो रामनवमी के समय में जोर पकड लेता है तथा यह मई माह के दूसरे सप्ताह तक रहती है।
इसके बाद किसान इसी में कदू की फसल को लगा देते हैं, जो लगभग तीन माह में वह भी तैयार होकर बिक जाती है। फिर किसान इसी में करैला की फसल लगा देते हैं। इस तरह किसान अपनी चार फसलों को ले लेते हैं। परंतु सबसे बडा दूर्भाग्य इस क्षेत्र के लिए यह है कि यहां इन किसानों को किसानी का गुर सिखाने वाला कोई नहीं है। यहां के किसान सलाहकार या कृषि विभाग के कर्मी बस भगवान से मनाते हैं कि किसानों की फसल पर प्राकृतिक मार पडे तथा वे उसके मुआवजे के नाम पर भरपूर वसूली करें। शायद ही किसान सलाहकार किसी किसान के खेतों को देखें हों तथा उन्हें उन्नत खेती के गुर सिखाते हैं। कुल मिलाकर इसबार भी यहां के किसानों की पीडा खीरा हरनेवाली है। काश अगर सरकार इसमें वैज्ञानिक तकनीक से मदद करती, तो किसानों को के लिए यह सोना में सुहागा जैसी बात होती।