पूर्णिया: Renu-Smrti-Parv 2025 पूर्णिया विश्वविद्यालय एवं विद्या बिहार आवासीय विद्यालय, परोरा के संयुक्त तत्वावधान में हिंदी साहित्य के महान कथाकार फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ जी की पुण्यतिथि के अवसर पर “रेणु स्मृति पर्व” का भव्य आयोजन किया गया। इस सांस्कृतिक आयोजन का मुख्य आकर्षण कला भवन नाट्य विभाग, पूर्णिया बिहार द्वारा प्रस्तुत नाटक ‘पंचलेट’ रहा, जिसे पूर्णिया के वरिष्ठ रंगकर्मी एवं बिहार कला पुरस्कार, भिखारी ठाकुर अवार्ड से सम्मानित श्री विश्वजीत कुमार सिंह के निर्देशन में मंचित किया गया। फणीश्वर नाथ रेणु की प्रसिद्ध आंचलिक कहानी ‘पंचलाइट’ पर आधारित इस नाट्य प्रस्तुति ने ग्रामीण जीवन, उसकी जटिलताओं, हास्य-व्यंग्य, प्रेम और सामाजिक सरोकारों को अत्यंत प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया।
नाटक में निर्देशक ने पारंपरिक लोकसंगीत, हास्य-व्यंग्य और ग्राम पंचायत के दृश्य को इतनी खूबसूरती से पिरोया कि मंचन के दौरान दर्शकों की तालियों की गूंज रुकने का नाम नहीं ले रही थी। इस नाटक में वरिष्ठ रंगकर्मी अजीत कुमार सिंह, अंजनी श्रीवास्तव, गरिमा कुमारी, प्रवीण कुमार, सुमित कुमार, अभिनव आनंद, मीरा झा, साक्षी झा, अवधेश कुमार और झारखंड से पधारे दिनकर शर्मा सहित सभी कलाकारों ने अपनी भूमिका को इतनी जीवंतता से निभाया कि दर्शकों को लगा जैसे वे उस गांव का हिस्सा हों। नाटक में गोधन और मुनरी के प्रेम प्रसंग को जिस तरह निर्देशक ने संवेदनशीलता के साथ चित्रित किया, वह दर्शकों के हृदय को छू गया। पंचलेट जलने के दृश्य के साथ गोधन और मुनरी का मिलन, मंच पर एक सुखद भावनात्मक उत्कर्ष बनकर उभरा।
इस नाट्य प्रस्तुति को सफल बनाने में कुंदन कुमार सिंह एवं राज रोशन का विशेष सहयोग रहा, वहीं संगीत पक्ष को सशक्त बनाने में रामपुकार टूटू, खुशबु स्पृया और संगीत झा का योगदान सराहनीय रहा। संगीत के माध्यम से नाटक में लोकधुनों और भावनाओं को प्रभावी ढंग से पिरोया गया, जिसने पूरे नाटक को ऊर्जावान और दर्शनीय बना दिया। ‘पंचलाइट’ कहानी की कथावस्तु बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण समाज की सच्चाइयों को उजागर करती है, जहाँ एक मेले से लाई गई पेट्रोमैक्स (जिसे गाँववाले ‘पंचलाइट’ कहते हैं) के प्रयोग और महत्व को लेकर पूरा गाँव उत्साहित होता है, परंतु इसे जलाना कोई नहीं जानता। गोधन, जो मुनरी से प्रेम करता है, यह कार्य कर सकता है, लेकिन वह सामाजिक तिरस्कार के कारण पंचायत से बहिष्कृत है।
अंततः जब वह पंचलाइट जलाता है, तो न सिर्फ गाँव रोशन होता है, बल्कि सामाजिक स्वीकृति के रूप में गोधन और मुनरी का विवाह भी संपन्न होता है। यह दृश्य दर्शकों के लिए भावनात्मक चरमोत्कर्ष था। ‘रेणु स्मृति पर्व’ के इस आयोजन ने न केवल साहित्यप्रेमियों को रेणु जी के लेखन से फिर से जोड़ने का कार्य किया, बल्कि ग्रामीण संवेदनाओं, प्रेम, संघर्ष और सामाजिक बदलाव की ओर एक रचनात्मक संदेश भी दिया। यह आयोजन पूर्णिया की सांस्कृतिक चेतना को पुनर्जीवित करने वाला एक सशक्त प्रयास बनकर सामने आया, जिसकी स्मृति लंबे समय तक दर्शकों के मन में बनी रहेगी।
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