इतिहास, कला और उपेक्षा की कहानी: राजनगर राजमहल अब बीते वैभव की याद में सिमटा

मधुबनी: मधुबनी जिले के राजनगर में स्थित ऐतिहासिक राजमहल कभी मिथिला की सांस्कृतिक शान और स्थापत्य कला का अनूठा उदाहरण हुआ करता था। भव्य मंदिरों, विशाल प्रांगण और विदेशी शैली की झलक लिए इस परिसर का निर्माण 19वीं सदी के उत्तरार्ध में दरभंगा राजवंश के शासक महाराजाधिराज रामेश्वर सिंह द्वारा कराया गया था। वास्तु विशेषज्ञों के अनुसार, इस परिसर की रचना में पारंपरिक मिथिला कला के साथ-साथ बंगाल और यूरोपीय शैली का सम्मिलन देखने को मिलता है, जो इसे पूरे बिहार में एक विशिष्ट पहचान दिलाता है।

राजनगर परिसर की सबसे उल्लेखनीय विशेषताओं में से एक है विशाल हाथी की पीठ पर निर्मित भवन, जो मिथिला की सांस्कृतिक मान्यताओं को दर्शाता है। हाथी और मछली यहां के शिल्प में बार-बार उभरने वाले प्रतीक हैं, जो समृद्धि, शौर्य और शुभता के प्रतीक माने जाते हैं। कहा जाता है कि इस परिसर के निर्माण में पहली बार आधुनिक निर्माण सामग्री—जैसे सीमेंट और लोहे—का इस्तेमाल किया गया था। ब्रिटिश इंजीनियरिंग तकनीक और भारतीय शिल्प का ऐसा संगम उस समय बहुत ही दुर्लभ था।

दुर्भाग्यवश, 1934 में आए विनाशकारी भूकंप ने इस स्थापत्य चमत्कार को गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया। तब से लेकर आज तक यह परिसर सरकारी उपेक्षा और संरक्षण के अभाव में जर्जर होता जा रहा है। जहां पहले राजसी उत्सव और सांस्कृतिक आयोजन होते थे, वहीं आज वहां खामोशी पसरी हुई है और दीवारों पर समय की मार साफ दिखाई देती है। स्थानीय लोग और इतिहासप्रेमी बार-बार इसके संरक्षण की मांग करते रहे हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस पहल नहीं हो पाई है। यदि इस विरासत स्थल को समय रहते संरक्षित नहीं किया गया, तो मिथिला के सांस्कृतिक इतिहास का यह चमकता अध्याय सिर्फ किताबों और यादों तक सीमित रह जाएगा।

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