पूर्णिया

PURNIA NEWS : खत्म होने के कगार पर पहुँच गया है बड़हारा का सरौता और चाकू उद्योग

PURNIA NEWS/आनंद यादुका : समूचे देश के लोगों के बिच सरौता और चाकू के उच्च क्वालिटी निर्माण को लेकर अपनी अलग पहचान रखनेवाला बड़हारा कोठी के कारीगरों कि जिन्दगी इस समय काफी दयनीय बनी हुई है| लगभग खत्म हो चुके इनके निर्माण से जुड़े लोगों के द्वारा यहाँ से पलायन करने कि मजबूरी बनी हुई है| राज्य कि तो बात दूर समूचे देश में यहाँ का सरौता और चाकू लोगों कि पहली पसंद हुआ करता था| लोग चाकू और सरौता खरीदने से पहले उसके उपर यहाँ बड़हारा का मार्का बीके जरुर देखते हैं| उच्च कोटि के निर्माण को लेकर बड़हारा कोठी के कई परिवारों में यह एक उद्योग का रूप ले चूका था| परन्तु किसी प्रकार के सरकारी सहायता से दूर और आर्थिक मंदी के वजह से इस समय यह उद्योग खत्म होने के कगार पर पहुँच चूका है| नतीजतन बड़हारा कोठी में निर्मित सरौता और चाकू देश के लोगों के लिए आनेवाले समय में बीते जमाने कि बात बनकर रह जाएगी|

राह दिखाने वाला था रोजगार :——

जब पुरे देश में कुटीर उद्योग को लेकर सरकार के द्वारा तरह-तरह के प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं| वहीं बड़हारा कोठी के इन छोटे कारोबार करनेवालों को किसी प्रकार का सरकारी सहयोग नहीं मिल पाया है| सरकारी सहयोग और मदद से बंचित अपने कौशल के बल पहचान बनानेवाले ये लोग न सिर्फ परिश्रमी हैं, बल्कि अन्य लोगों के लिए राह दिखानेवाले भी थे| बर्बाद हो चुके इस रोजगार से जुड़े बीकोठी प्रखंड मुख्यालय के परिवार के युवा वर्ग जहाँ इससे मुंह मोड़ दुसरे प्रदेशों में रोजगार के लिए पलायन करने लगे हैं| वहीं कुछ बुजुर्ग और युवा वर्ग आज भी इस रोजगार को चलाने का काम कर रहे हैं| आर्थिक मंदी के इस दौर में इस कारोबार से जुड़े लोग बताते हैं कि वर्तमान समय में इस कारोबार को चलाने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पर रहा है| नतीजतन पहले कि अपेक्षा यहाँ के उत्पादन पर काफी प्रतिकूल असर परा है| जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर और धमदाहा अनुमंडल मुख्यालय से बारह किलोमीटर कि दुरी पर स्थित बड़हारा कोठी प्रखंड मुख्यालय में कई बैंकों कि शाखा है| परन्तु इन बैंको से भी किसी प्रकार कि मदद से बंचित बीकोठी शर्माटोला गांव के नौजवान अब पलायन कर रहे हैं| यहाँ के लोगों ने मेहनत के बल पर गांव कि तकदीर बदल दी थी| लेकिन गांव की नयी पौध बेचैन है| वो गांव छोड़ बाहर जा रहे हैं,कारण तरह-तरह की अड़चन बताते हैं| गांव के बड़े-बुजुर्ग चिंतित हैं, उनका कहना है कि यही हाल रहा तो जिस हुनर से लौह उद्योग के क्षेत्र में देश-दुनिया में नाम कमाया है, उसका गांव से सफाया हो जायेगा| आज भी बीकोठी प्रखंड मुख्यालय के शर्माटोला के लगभग 25 परिवारों में चाकू,सरौता,दबिया एवं कुल्हाड़ी बनाने कि भट्ठियां काम कर रही है| इनमें काम करनेवाले कच्चा माल,कोयला व लोन कि कमी और सरकारी उपेक्षा से परेशान हैं| मुख्यतः लोहे के सामान बनानेवाले कारोबारियों को लोहा और कोयला कि समस्या झेलनी पड़ रही है| दुनियां के साथ कदम मिलाकर चलने के लिए यहाँ के कारीगरों को समुचित संसाधन के साथ ट्रेनिग कि भी जरूरत है| परेशान लोग कहते हैं कि अपने यहाँ हैं हजार दिक्कतें कैसे करें देश-दुनियां की प्रतिस्पर्धा से मुकाबला|

स्वर्ण जयंती स्वरोजगार से जगी थी उम्मीद :—–

स्वर्ण जयंती स्वरोजगार योजना के तहत मदद मिलने कि उम्मीद यहाँ के कारोबारियों में जरुर जगी थी| परन्तु इसके आने के बाद भी यहाँ के लोगों को किसी प्रकार का मदद नहीं मिल पाया| नजीतन यहाँ के लोगों का पुस्तैनी कारोबार खत्म होने के कगार पर पहुँच गया है| पारम्परिक हथियार,कृषि कार्य में काम आनेवाले सामान, सरौता और चाकू और चाय बगान के लिए कुलिंग नाइफ बनानेवाले यहाँ के कारोबारियों के समक्ष अपना धंधा बंद करने कि नौबत वर्तमान समय में आ गयी है|

प्रभावित हुए थे अंग्रेज :——

पुस्तैनी धंधा संभाल रहे 70 बर्षीय शिव प्रसाद शर्मा कहते हैं कि बीकोठी में अंग्रेजो कि नील कि कोठी हुआ करता था| और उसवक्त यहाँ के कारीगरों के द्वारा उच्च क्वालिटी के निर्माण को देखकर यहाँ रहनेवाले अंग्रेज अधिकारी भी काफी प्रभावित हुए थे| और यहाँ रहनेवाले अंग्रेज अधिकारी भी अपने यहाँ उपयोग में आनेवाले लोहे के सामनों कि मांग यही से पूरी करते थे| परन्तु वर्तमान सरकार के द्वारा इस तरफ किसी प्रकार का ध्यान इस उद्योग कि तरफ नहीं दिया जा रहा है|

देश भर में है मांग :——-

राज्य के बिभिन्न शहरों सहित देश के सभी प्रमुख जगहों में बीकोठी प्रखंड मुख्यालय के शर्माटोला में निर्मित सरौता, चाकू एवं कुल्हाड़ी कि काफी मांग है| बिहार के सभी प्रमुख शहरों के अलावे झारखण्ड के देवघर,दुमका,जरमुंडी उत्तरप्रदेश के बनारस, कानपुर, लखनऊ, पश्चिम बंगाल के पुरुलिया,मालदा, रायगंज, आसनसोल, कोलकाता आदि जगहों से यहाँ व्यवसायी आते हैं| या फिर यहाँ के करोबारियों के द्वारा यहाँ निर्मित लोहे का सामान उन्हें पहुँचाया जाता है| इसके अलावे समूचे बिहार में यहाँ निर्मित लोहे के सामानों कि मांग काफी ज्यादा है| परन्तु सरकार का ध्यान इस तरफ नहीं जा रहा है| नतीजतन यहाँ का रोजगार खत्म होने के कगार पर पहुँच गया है|

क्यों लोहे में कमाया नाम :—–

बीकोठी रेलवे स्टेशन से कुछ दुरी पर स्थित शर्माटोला में सभी जाती के लोग रहते हैं| पर सबसे ज्यादा शर्मा समाज के लोग हैं| बुजुर्गों के अनुसार शुरू में जंगल के बीच बसे होने के कारण यहाँ कोई और साधन नहीं था,और खेती भी नहीं होती थी| ऐसे में यहाँ के लोगों ने शुरुआत में जंगल को काटकर खेती करने के लिए पारम्परिक हथियार बनाने का काम यहाँ के लोगों ने आरम्भ किया| बुजुर्ग बताते हैं कि शुरुआत में अपने लिए आरम्भ किये गए काम ने यहाँ छोटे उद्योग का रूप ले लिया| और समय के साथ यहाँ का यह उद्योग उच्च क्वालिटी के निर्माण को लेकर लोगों के बिच अपनी अलग पहचान बना लिया| यहाँ निर्मित लौह सामानों कि धिरी-धीरे ख्याति फ़ैल गयी और इसकी मांग समूचे देश में होने लगी| जिसके बाद लोगों ने इस धंधे को अपना लोहे का सामान बनाना शुरू किया| बीकोठी रेलवे स्टेशन ने भी इस धंधे को बढ़ाने में अपना योगदान दिया| निर्माण से जुड़े लोग अपने सामनों को रेल के द्वारा बाहर भेजने का काम किया|

लोग जो चाहते हैं :——

कोयले और लोहे पर यहां का व्यवसाय निर्भर है, परन्तु पास में कोयले का कोई काउंटर या डीपो नहीं है| दूर से कोयला और लोहा लाने पर ज्यादा पैसे खर्च होते हैं| इस कारण कोयले का काउंटर और लोहे का कच्चा माल चाहते हैं गांववाले| सरकारी लोहे की कीमत अधिक व निजी कंपनी की कम है| पर उसे खरीदने में होनेवाली दिक्कतों का समाधान हो| बैंक से लोन मिलने में होनेवाली दिक्कतें कम की जायें| सबसे बड़ी दिक्कत सरकारी बाबुओं से है| नियमों के जंजाल में सब परेशान हैं, इसे आसान बनाया जाये| व्यवसाय से संबंधित प्रशिक्षण मिले, बच्चों के लिए शिक्षा और स्वास्थ की भी सुविधा बढ़े|

कहते हैं कारोबारी:—–

निर्माण से जुड़े शर्माटोला के कारोबारी अमित कुमार शर्मा, रवी कुमार शर्मा,रामचंद्र शर्मा, महाराणा प्रसाद शर्मा, जय कुमार शर्मा,कुंदन कुमार शर्मा,सुरेश शर्मा,मनोज शर्मा,अर्जुन शर्मा, जवाहर शर्मा,नंदलाल शर्मा, रामचंद्र शर्मा आदि कहती हैं कि जीएसटी लगाये जाने के बाद से इनके कारोबार पर काफी विपरीत प्रभाव पड़ा है| सभी बताते हैं कि क्या फायदा यहाँ रहकर इस रोजगार को चलाने से| किसी प्रकार कि सुविधा नहीं, इस कारण लगभग लागत मूल्य पर सामान बेचना पड़ रहा है| इतनी मेहनत के बा भी लाभ नहीं,फिर क्यों ऐसा धंधा करें| लोन लेने में भी काफी दिक्कत ,कैसे अपने धंधे को अपग्रेड करें| कारोबारियों ने सरकारी मदद कि मांग किया है ताकि यहाँ का रोजगार इतिहास बनने से बच सके|

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