Ambedkar Jayanti: पूर्णिया महिला महाविद्यालय में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जयंती पर सेमिनार का आयोजन

Ambedkar Jayanti

पूर्णिया, किशन भारद्वाज: Ambedkar Jayanti पूर्णिया महिला महाविद्यालय में भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती बड़े ही श्रद्धा एवं गरिमा के साथ मनाई गई। इस अवसर पर महाविद्यालय की प्रधानाचार्या डॉ. रिता सिन्हा के मार्गदर्शन में एक विचारगोष्ठी (सेमिनार) का आयोजन किया गया। सेमिनार का उद्देश्य डॉ. अंबेडकर के जीवन, विचारों और उनके समाज सुधारक योगदान को याद करते हुए युवाओं को प्रेरित करना था। अंग्रेजी विभाग की अध्यक्ष डॉ. उषा शरण ने अपने वक्तव्य में कहा कि डॉ. अंबेडकर एक महान विचारक, समाज सुधारक और संविधान निर्माता थे। उन्होंने दलितों, आदिवासियों और महिलाओं के उत्थान के लिए ऐतिहासिक कार्य किए हैं। प्रोफेसर कुमारी मृदुलता ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में उनका योगदान अतुलनीय है। 1953 में उन्हें उस्मानिया विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट् की उपाधि से नवाजा गया, जो उनकी विद्वत्ता का प्रतीक है।

एनएसएस इकाई प्रथम के कार्यक्रम प्राधिकारी डॉ. राकेश रोशन सिंह ने सेमिनार का संचालन करते हुए कहा कि डॉ. अंबेडकर ने स्वयं कहा था—”मैं मूर्तियों में नहीं, किताबों में हूं। मुझे पूजने की नहीं, पढ़ने की जरूरत है।” उन्होंने डॉ. अंबेडकर को एक विचार बताया जो सदियों तक समाज को दिशा देता रहेगा। प्रोफेसर कुमार गौरव ने डॉ. अंबेडकर के धर्म संबंधी दृष्टिकोण पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वे ऐसे धर्म को मानते थे जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे का संदेश देता हो। उन्होंने कहा कि एक सफल क्रांति केवल स्वतंत्रता नहीं बल्कि सामाजिक न्याय और राजनीतिक आज़ादी भी दिलाती है। डॉ. प्रमोद कुमार ने बताया कि डॉ. अंबेडकर ने मूकनायक और बहिष्कृत भारत जैसे समाचार पत्रों का संपादन कर समाज में जागरूकता फैलाने का काम किया।

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डॉ. कुमारी रंजीत ने मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से डॉ. अंबेडकर के विचारों का समाज पर प्रभाव विषय पर विस्तृत व्याख्यान दिया। डॉ. रंजन कुमार ने कहा कि डॉ. अंबेडकर एक सोच और दर्शन हैं। उन्होंने समाज में आरक्षण के माध्यम से हाशिये पर पड़े लोगों को मुख्यधारा से जोड़ा और आज भी यह नीति लाखों लोगों को लाभ पहुँचा रही है। हिंदी विभाग की डॉ. प्रेरणा ने कहा कि डॉ. अंबेडकर के विचारों से समाज में एक नई क्रांति आई है, उन्होंने हर वर्ग को समान अवसर देकर आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त किया। डॉ. मसूद अली देवान ने उन्हें सामाजिक समरसता का प्रतीक बताया और कहा कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें भारत का प्रथम कानून मंत्री बनाया था, जो उनके ज्ञान और नेतृत्व क्षमता का प्रमाण है।

सेमिनार में डॉ. राधा कुमारी, डॉ. जागृति राय, डॉ. उषा सहित कई शिक्षकों और छात्राओं ने भाग लिया और विचार रखे। कार्यक्रम में नीलम, राखी सिंह, नंदिनी, काजल, खुशी, सुफियान समेत कई स्वयंसेवक और छात्राएं सक्रिय रूप से शामिल रहीं। कार्यक्रम का समापन धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ, जिसे उत्तम कुमार मिश्रा ने प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि डॉ. अंबेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को बौद्ध धर्म ग्रहण किया था और उनकी प्रसिद्ध रचना बुद्ध और उनका धम्म आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने सेमिनार के सफल आयोजन के लिए सभी प्रतिभागियों और आयोजकों का आभार व्यक्त किया। यह कार्यक्रम डॉ. अंबेडकर के विचारों को जन-जन तक पहुँचाने की दिशा में एक प्रेरणादायक पहल रही।

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