पूर्णिया विश्वविद्यालय की तकनीकी लापरवाही से सैकड़ों छात्र परीक्षा फॉर्म भरने से वंचित, प्रशासन पर उठे गंभीर सवाल
पूर्णियां, किशन भारद्वाज: पूर्णिया विश्वविद्यालय एक बार फिर अपनी कार्यप्रणाली और तकनीकी कुप्रबंधन को लेकर छात्र-छात्राओं के बीच आलोचना का केंद्र बन गया है। स्नातक (CBCS आधारित) चौथा सेमेस्टर एवं स्नातकोत्तर द्वितीय सेमेस्टर जून 2025 की परीक्षा के लिए ऑनलाइन परीक्षा-प्रपत्र भरने की अंतिम तिथि 24 जून से 25 जून 2025 निर्धारित की गई थी। लेकिन जैसे ही 24 जून को विद्यार्थी फॉर्म भरने के लिए पोर्टल (www.purneau.ac.in) के ऑनलाइन प्रपत्र भरने के लिए लिंक पर गए, वेबसाइट तकनीकी खराबी के चलते बंद हो गई। छात्रों ने जब परीक्षा विभाग से संपर्क किया तो उन्हें बताया गया कि वेबसाइट मेंटेनेन्स मोड में है और शाम तक पुनः चालू कर दी जाएगी। लेकिन यह आश्वासन खोखला साबित हुआ। 25 जून को भी जब छात्र पोर्टल खोलने का प्रयास कर रहे थे तो उन्हें “This site can’t be reached” जैसी त्रुटि का सामना करना पड़ा। यह स्थिति पूरे दिन बनी रही।
जब उपपरीक्षा नियंत्रक श्री संतोष सिंह से इस गड़बड़ी पर सवाल किया गया तो उन्होंने दावा किया कि पोर्टल दोपहर तक काम करने लगेगा। परंतु छात्रों को शाम तक भी कोई राहत नहीं मिली। इस तकनीकी लापरवाही के कारण सैकड़ों छात्र-छात्राएँ परीक्षा-प्रपत्र भरने से वंचित रह गए। इस दौरान विश्वविद्यालय और कॉलेज के चक्कर लगाते छात्र भीषण गर्मी में बेहद परेशान और असहाय नजर आए। कई छात्रों ने आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय प्रशासन की यह घोर लापरवाही छात्र हितों के साथ खिलवाड़ है। जिस समय पर छात्रों को पढ़ाई और परीक्षा की तैयारी में होना चाहिए, उस समय उन्हें तकनीकी अव्यवस्था के कारण मानसिक तनाव और असमंजस झेलना पड़ रहा है।
आख़िरकार छात्रों के भारी दबाव और असंतोष को देखते हुए परीक्षा विभाग ने एक नई अधिसूचना जारी की, जिसमें ऑनलाइन परीक्षा फॉर्म भरने की तिथि 26 जून 2025 को मात्र एक दिन के लिए विस्तारित किया गया है। हालांकि यह निर्णय स्वागत योग्य है, पर यह भी स्पष्ट करता है कि विश्वविद्यालय पहले से न तो तैयार था और न ही किसी वैकल्पिक व्यवस्था को सक्रिय रखा गया था। छात्रों ने मांग की है कि विश्वविद्यालय प्रशासन को भविष्य में ऐसी तकनीकी विफलताओं से बचने के लिए सुदृढ़ IT इंफ्रास्ट्रक्चर, बैकअप पोर्टल, और रियल-टाइम टेक्निकल सपोर्ट सिस्टम तैयार करना चाहिए ताकि हजारों विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ न हो। यह सिर्फ तकनीकी समस्या नहीं, बल्कि छात्रों के अधिकार और विश्वास पर चोट है — और इसका जवाब विश्वविद्यालय प्रशासन को देना ही होगा।