PURNEA NEWS : प्रकृति के सबसे बड़े पूजक आदिवासी समुदाय के लोग ही होते हैं। उन्होंने प्रकृति से हमेशा अपना रिश्ता जोड़ कर रखा है। प्रकृति से इसी जुड़ाव की वजह से आज भी यह समुदाय छल और प्रपंच से दूर है।प्रकृति के साथ अगर आप जीना सीखना चाहते हैं तो आपको आदिवासी समुदाय से सीखने की जरूरत है।उक्त बातें पूर्व सांसद संतोष कुशवाहा ने मंगलवार को सरहुल-बाहु पूजा महोत्सव के मौके पर निकली शोभा-यात्रा का जीरो माइल ,गुलाबबाग में स्वागत करने के दौरान कही।इस मौके पर उन्होंने शोभा-यात्रा में शामिल महिलाओं और पुरुषों को प्रकृति पर्व सरहुल की शुभकामनाएं दिया और उनके बीच पानी और जूस का वितरण किया।
श्री कुशवाहा उसके बाद राजेन्द्र बाल उद्यान में आयोजित सरहुल बाहा पूजा महोत्सव में भी शामिल हुए।उन्होंने उन्होंने पूजा स्थल पर जाकर पूजा -आराधना किया।लोगों से मिलकर उन्होंने सरहुल की बधाई दी।वहीं, पूजा समिति द्वारा उन्हें अंग-वस्त्र देकर सम्मानित भी किया गया।इस मौके पर कहा कि सच्चाई यही है कि हम प्रकृति के बिना अपने अस्तित्व की कल्पना नही कर सकते हैं। ऐसे में इस पर्व की महत्ता और भी बढ़ जाती है।कहा कि, सरहुल के मौके पर पुरखों को याद किया जाता है जो यह संदेश देता है कि अगर आपकी जड़े पूर्वजों से जुड़ी रहेंगी तो आपकी पहचान भी अक्षुण्ण रहेगी।उन्होंने कहा कि यह पर्व एक दूसरे से जुड़े रहने का पर्व है और समाज मे आपसी भाईचारा, अमन और चैन बना रहे यही इस पर्व का मूल उद्देश्य है।इस मौके पर जेडीयू के प्रदेश सचिव नीलू सिंह पटेल, शंकर कुशवाहा, संजय राय, सुशांत कुशवाहा, अविनाश कुशवाहा, चंदन मजूमदार आदि मौजूद थे।
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