NEW DELHI : थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में चल रहे बिम्सटेक (BIMSTEC) शिखर सम्मेलन के मौके पर गुरुवार को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस के बीच बहुप्रतीक्षित मुलाकात हुई। यह बैठक पिछले साल शेख हसीना की सरकार गिरने के बाद दोनों देशों के नेताओं की पहली औपचारिक बातचीत थी। इस मुलाकात ने भारत-बांग्लादेश संबंधों में हाल के तनाव के बीच एक नई उम्मीद जगाई है।
मुलाकात का माहौल और संदर्भ
बिम्सटेक डिनर के दौरान दोनों नेताओं को एक साथ देखा गया, जिसके बाद शुक्रवार को औपचारिक बैठक हुई। सूत्रों के मुताबिक, यह मुलाकात बांग्लादेश की ओर से प्रस्तावित की गई थी, जो ढाका की संबंधों को सामान्य करने की इच्छा को दर्शाता है। शेख हसीना के सत्ता से हटने और भारत में शरण लेने के बाद दोनों देशों के रिश्तों में ठंडापन आ गया था। खास तौर पर मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के चीन और पाकिस्तान के साथ बढ़ते रिश्तों ने भारत की चिंताएं बढ़ा दी थीं। हाल ही में यूनुस के चीन दौरे और वहां भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को “लैंडलॉक्ड” कहने वाले बयान ने विवाद को जन्म दिया था। इसके अलावा, बांग्लादेश में हिंदुओं और अल्पसंख्यकों पर हमलों की खबरों ने भी भारत को सख्त रुख अपनाने के लिए मजबूर किया था।
क्या रहा चर्चा का केंद्र?
हालांकि बैठक का विस्तृत ब्योरा अभी सामने नहीं आया है, लेकिन माना जा रहा है कि पीएम मोदी ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का मुद्दा प्रमुखता से उठाया। इसके साथ ही व्यापार, कनेक्टिविटी और क्षेत्रीय सहयोग जैसे द्विपक्षीय मसलों पर भी बात हुई। बांग्लादेश के लिए भारत एक अहम व्यापारिक साझेदार है, और दोनों देशों के बीच सीमा और जल संसाधन जैसे मुद्दे भी लंबे समय से चर्चा में हैं।
रिश्तों पर असर
इस मुलाकात को जानकार भारत-बांग्लादेश संबंधों में तनाव कम करने की दिशा में पहला कदम मान रहे हैं। भारत ने हमेशा बांग्लादेश के साथ स्थिर और मैत्रीपूर्ण रिश्तों को तरजीह दी है। पीएम मोदी ने पहले भी बांग्लादेश के राष्ट्रीय दिवस और ईद पर यूनुस को शुभकामनाएं भेजकर सकारात्मक संकेत दिए थे। अगर यूनुस अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और भारत के साथ सहयोग पर ठोस आश्वासन देते हैं, तो यह दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली की राह खोल सकता है।
हालांकि, क्षेत्रीय भू-राजनीति में चीन और पाकिस्तान की बढ़ती भूमिका चिंता का विषय बनी हुई है। यूनुस सरकार के हालिया कदमों से संकेत मिलता है कि बांग्लादेश अपनी विदेश नीति में संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में भारत के लिए यह जरूरी होगा कि वह बांग्लादेश के साथ रिश्तों को मजबूत रखे ताकि क्षेत्र में उसका प्रभाव बना रहे।
आगे की राह
यह मुलाकात दोनों देशों के लिए एक नई शुरुआत हो सकती है, बशर्ते दोनों पक्ष आपसी हितों को प्राथमिकता दें। आने वाले दिनों में इस बैठक के नतीजे और दोनों देशों की नीतियां इस बात का फैसला करेंगी कि क्या यह मुलाकात महज औपचारिकता थी या वास्तव में रिश्तों को नई दिशा देने वाली साबित होगी। फिलहाल, सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या भारत और बांग्लादेश अपने ऐतिहासिक संबंधों को फिर से मजबूत कर पाएंगे।