नई दिल्ली: National Herald Case कभी देश की आज़ादी की अलख जगाने वाला “नेशनल हेरल्ड” आज एक जटिल राजनीतिक और कानूनी विवाद का प्रतीक बन गया है, जिसमें देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के शीर्ष नेताओं पर वित्तीय गड़बड़ियों, मनी लॉन्ड्रिंग और शक्तियों के दुरुपयोग के आरोप लगे हैं। इस अखबार की शुरुआत 1938 में पंडित जवाहरलाल नेहरू और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने की थी, जिसका मकसद स्वतंत्रता संग्राम के विचारों को जनता तक पहुंचाना था। लेकिन समय के साथ यह अखबार वित्तीय संकट में डूब गया और 2008 में इसका प्रकाशन पूरी तरह ठप हो गया। इसी दौरान कांग्रेस पार्टी ने एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) को करीब 90 करोड़ रुपये बिना ब्याज के कर्ज दिए, जिसे चुकाने में AJL असमर्थ रहा।
2010 में यंग इंडियन नाम की एक नई कंपनी अस्तित्व में आई, जिसमें सोनिया गांधी और राहुल गांधी बहुसंख्यक शेयरधारक थे। इस कंपनी ने महज 50 लाख रुपये में AJL का पूरा कर्ज और उस पर मौजूद संपत्तियां अधिग्रहित कर लीं, जिनकी बाजार कीमत हजारों करोड़ रुपये आंकी गई। यही सौदा विवाद का केंद्र बना, जब बीजेपी नेता और वकील सुब्रमण्यम स्वामी ने इसे एक सुनियोजित साजिश करार देते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया। उनका आरोप था कि इस सौदे के जरिए गांधी परिवार ने न्यूनतम निवेश में बड़ी संपत्तियों पर नियंत्रण कर लिया और इसका इस्तेमाल व्यावसायिक गतिविधियों, किराया वसूली और फर्जी डोनेशन के माध्यम से धन कमाने में किया गया।
प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने इस मामले की जांच करते हुए मनी लॉन्ड्रिंग की आशंका जताई और सोनिया, राहुल समेत कई लोगों से पूछताछ की। जांच में पाया गया कि YIL ने एक संदिग्ध कंपनी से कर्ज लिया था, जिससे AJL का नियंत्रण हासिल किया गया। ED के अनुसार, इस प्रक्रिया में लगभग 988 करोड़ रुपये की ‘अपराध की आय’ उत्पन्न हुई। 2023 में ED ने AJL की सैकड़ों करोड़ की संपत्तियों को जब्त किया और 2025 में PMLA के तहत चार्जशीट भी दाखिल की। इस मामले में आयकर विभाग और CBI की भी भूमिका रही, जिन्होंने दस्तावेजों और वित्तीय लेन-देन की पड़ताल की और नियमों के उल्लंघन की पुष्टि की।
कांग्रेस पार्टी का कहना है कि यह मामला पूरी तरह राजनीति से प्रेरित है और इसका उद्देश्य विपक्ष को कमजोर करना और गांधी परिवार को बदनाम करना है। पार्टी का दावा है कि AJL को दिया गया कर्ज नेशनल हेरल्ड जैसे ऐतिहासिक संस्थान को बचाने के लिए था, न कि किसी निजी लाभ के लिए। वहीं, जांच एजेंसियों का कहना है कि जिस प्रकार से एक गैर-लाभकारी संस्था ने व्यावसायिक तरीके से संपत्तियां लीं और उनसे आय अर्जित की, वह कानूनन गलत है।
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या देश की राजनीतिक विरासत से जुड़ी संस्थाओं का निजी हित में इस्तेमाल किया जा सकता है? और क्या कानून के दायरे में सभी राजनीतिक शक्तियां वास्तव में बराबर हैं? नेशनल हेरल्ड, जो कभी विचारों का मंच था, अब सत्ता, संपत्ति और साख की लड़ाई में उलझ गया है — एक ऐसा मुकदमा जो न केवल अदालत में, बल्कि देश की जनता की अदालत में भी गूंज रहा है।
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