पूर्णिया

PURNIA NEWS : पूर्णिया विश्वविद्यालय में परीक्षा शुल्क घोटाले का आरोप? छात्रों से तकनीकी बहाने पर दोहरी वसूली, जवाबदेही से बच रहा प्रशासन!

PURNIA NEWS,नंदकिशोर : पूर्णिया विश्वविद्यालय, पूर्णिया के सैकड़ों छात्र आज एक ऐसे गंभीर संकट से जूझ रहे हैं, जिसे अब सिर्फ “तकनीकी गड़बड़ी” कहकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हर साल जब स्नातक एवं स्नातकोत्तर परीक्षाओं के लिए ऑनलाइन परीक्षा-प्रपत्र भरने की प्रक्रिया शुरू होती है, तब छात्रों से न केवल नियत परीक्षा शुल्क वसूला जाता है, बल्कि अतिरिक्त प्लेटफॉर्म चार्ज भी उनके सिर डाला जाता है। यह पूरा लेनदेन विश्वविद्यालय द्वारा अधिकृत (एटीओएम ) ATOM बैंकिंग प्लेटफॉर्म के माध्यम से किया जाता है। लेकिन पिछले कई वर्षों से बार-बार एक ही समस्या सामने आ रही है — छात्रों के खाते से पैसे कट जाते हैं, लेकिन न तो परीक्षा-प्रपत्र जनरेट होता है और न ही कोई स्पष्ट रसीद मिलती है। जब छात्र दोबारा पोर्टल पर लॉगिन करते हैं, तो उन्हें पुनः शुल्क भरने के लिए बाध्य किया जाता है, मानो पिछला भुगतान कभी हुआ ही नहीं। जब छात्र इस तकनीकी विसंगति की शिकायत लेकर विश्वविद्यालय या परीक्षा विभाग के पास पहुंचते हैं, तो उन्हें एक गैर-जिम्मेदाराना उत्तर मिलता है: “पुनः भुगतान कीजिए, पैसा लौट आएगा।” और जब छात्र यह सवाल करते हैं कि जब एक बार भुगतान हो चुका है तो उन्हें फिर से क्यों भुगतान करना पड़े, तो विश्वविद्यालय प्रशासन कहता है: “हमारे पास तो पैसा आया ही नहीं, बैंक से संपर्क कीजिए।” दूसरी ओर बैंक कहता है: “हमने तो पैसा विश्वविद्यालय को भेज दिया है, अब आप वहीं से पूछिए।” यह स्थिति एक स्पष्ट प्रशासनिक असफलता नहीं, बल्कि एक संगठित आर्थिक घोटाले की बू देती है। वर्षों से चले आ रहे इस दोहरे भुगतान के चक्रव्यूह में फंसे छात्र मानसिक, शैक्षणिक और आर्थिक रूप से शोषित हो रहे हैं। वे एक बार फिर से भुगतान करने को विवश हो जाते हैं इस झूठी उम्मीद में कि पहले का पैसा लौट आएगा। लेकिन सच्चाई यह है कि कई छात्रों को सालों बीत जाने के बावजूद उनकी राशि वापस नहीं मिली है।

अब यह सवाल उठाना लाजिमी है :-

  • क्या यह पूरे मामले को ‘तकनीकी त्रुटि’ कहकर टाल देना एक सुनियोजित घोटाले पर पर्दा डालने की कोशिश है?
  • विश्वविद्यालय यह क्यों नहीं बताता कि ATOm बैंकिंग प्लेटफॉर्म से जुड़ी कितनी शिकायतें अब तक दर्ज हुईं और कितनों को निस्तारित किया गया?
  • जिन छात्रों ने एक ही परीक्षा के लिए दो बार भुगतान किया, उनकी धनराशि का लेखा-जोखा क्या है? यदि पैसा विश्वविद्यालय के पास नहीं गया, लेकिन बैंक कह रहा है कि राशि ट्रांसफर हो चुकी है, तो फिर वह पैसा गया कहां?
  • क्या यह मान लिया जाए कि विश्वविद्यालय की ऑनलाइन परीक्षा प्रणाली जानबूझकर दोषपूर्ण रखी गई है ताकि छात्र बार-बार भुगतान करने को मजबूर हों?
  • छात्रों के बीच अब यह धारणा तेजी से गहराती जा रही है कि यह कोई साधारण लापरवाही नहीं, बल्कि एक संभावित आर्थिक घोटाले का रूप ले चुका है। इसके पीछे या तो गंभीर तकनीकी लापरवाही है, या फिर संगठित रूप से छात्रों की जेब काटने की साजिश। और अगर यह साजिश नहीं है, तो फिर वर्षों से चली आ रही इस समस्या पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई?

अब वक्त आ गया है कि इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच हो। दोषियों की पहचान की जाए और उन्हें जवाबदेह ठहराया जाए। जो छात्र आर्थिक रूप से प्रताड़ित हुए हैं, उन्हें समयबद्ध तरीके से उनकी राशि लौटाई जाए। अगर यह घोटाला अनदेखा किया गया, तो यह केवल छात्रों का नहीं, बल्कि न्याय, प्रशासन और शिक्षा व्यवस्था का घोर अपमान होगा। छात्रों की यह लड़ाई अब केवल फीस की वापसी नहीं, बल्कि अपने अधिकार, पारदर्शिता और न्याय की मांग है — और इसे रोका नहीं जा सकता।

जब इस मामले पर यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार अनंत प्रसाद गुप्ता से बात की गई तो उन्होंने कहा कि सब के अलग-अलग विभाग है। कई लोगों की आवेदन देने के बाद उन्हें पैसा लौटाया गया है। परंतु वास्तविकता यह है कि किन्ही छात्र को पैसा नहीं लौटाया गया है जिसकी अधिक से अधिक जानकारी हम मीडिया वालों के पास है। दूसरी तरफ जब डिप्टी कंट्रोलर पिनाकी रंजन जी से बात की गई जिन्होंने हाल फिलहाल में छात्रों को कहा था कि सप्ताह दिनों के अंदर पैसा लौटाया जाएगा पहले तो उन्होंने कहा कि मैं ऐसा कुछ नहीं कहा है लेकिन बाद में कहा कि ऐसी बात नहीं है। अगर ऐसा है भी तो जो जो लोग आवेदन देंगे उन्हें पैसा वापस होगा जिस अकाउंट से पैसा आया है। उन्होंने यह भी कहा कि मेरा विभाग नहीं है। परंतु रजिस्ट्रेशन विभाग इनके पास है और इन्हें इन चीजों पर ध्यान देना चाहिए।

छात्र कल्याण पदाधिकारी मरगूब आलम से इस मामले पर बात करने के लिए दर्जनों कॉल किए गए परंतु पता चला कि वह किसी छात्रों का फोन या किसी का कोई अन्य फोन नहीं उठाते हैं। व्हाट्सएप पर उनसे मैसेज में जवाब मांगा गया परंतु उनका कोई जवाब नहीं आया। इसी मामले पर कुलपति महोदय से जब बात करने का प्रयास किया गया तो उनका भी फोन रिसीव नहीं हुआ।

छात्रों को डर है कि अगर हमारे द्वारा दिए गए प्रमाणों को आउट किया जाएगा तो मेरे करियर पर आएगा। यूनिवर्सिटी के लोग हम लोगों से किसी ने किसी रूप में बदला लेंगे। इसलिए उनके द्वारा दिए गए प्रूफ को हम लोग प्रकाशित नहीं कर रहे हैं। सैकड़ो छात्रों का प्रूफ हमारे कार्यालय में है आवश्यकता पड़ने पर उसका बहुत मामले में प्रमाण के रूप में सामने रखा जा सकता है गोपनीय रूप से। छात्रों के डर का यह आलम है कि वह अपना नाम नहीं प्रकाशित करना चाहते। यूनिवर्सिटी पैसा नहीं लौटा रहा है ।शक है कि उस पैसे को लोग बंदर बांट न कर लिए हो। भ्रष्टाचार के इस वक्त के सबसे बड़े केंद्र के रूप में यूनिवर्सिटी स्थापित होते जा रहा है छात्रों की राजनीति और छात्र नेताओं द्वारा भ्रष्टाचार करने का प्रूफ दिखाने का डर दिखाकर यूनिवर्सिटी के डिसीजन तक को बदलवा दिए जाते हैं। यूनिवर्सिटी का यह बड़ा मामला है। परंतु छात्र नेता ऐसे ही ब्लैकमेल नहीं कर रहे हैं ब्लैकमेल करने का कारण सिर्फ यह है कि यूनिवर्सिटी में 90% भ्रष्टाचार में डूबा है ।इसके बहुत सारे प्रमाण मौजूद है। लगातार खबरों में सारी बातें आई है। यूनिवर्सिटी प्रशासन को तय करना है कि यूनिवर्सिटी की गरिमा कैसे बनी रहे।

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