पूर्णिया: PURNIA NEWS पूर्णिया जिला मुख्यालय से मात्र 23 किलोमीटर की दूरी पर स्थित श्रीनगर प्रखंड को भले ही 1990 में प्रशासनिक पहचान मिल गई हो, लेकिन ज़मीनी हालात आज भी किसी उपेक्षित बस्ती जैसे हैं। आज़ादी के 77 साल बाद भी यहां बुनियादी सुविधाएं नदारद हैं—न ठीक सड़क है, न नालियों की व्यवस्था। हल्की सी बारिश होते ही पूरा बाज़ार जलमग्न हो जाता है, दुकानों में सन्नाटा पसर जाता है और राहगीरों की मुश्किलें दोगुनी हो जाती हैं। 2018 में जब इस इलाके को श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूर्बन मिशन में शामिल किया गया था, तब उम्मीद जगी थी कि अब शायद कुछ बदलेगा।
अख़बारों में बड़े-बड़े दावे किए गए, योजनाओं की लिस्ट बनी, लेकिन धरातल पर कुछ भी नहीं उतरा। ना सड़क बनी, ना नालियां साफ़ हुईं, ना अस्पतालों की हालत सुधरी, और न ही स्कूलों की। स्थानीय लोग अब व्यंग्य में कहते हैं कि “विकास बाबू की गाड़ी” रास्ता भटक गई है—जो कभी आई ही नहीं। छतरी लेकर लोग इंतज़ार कर रहे हैं कि कब कोई अफसर, कोई नेता यहां आएगा और इस इलाके की किस्मत बदलेगी। डर इस बात का है कि अगर हालात ऐसे ही रहे, तो अगली बारिश में लोग उसी पानी में नाव चलाकर ‘विकास जी’ को ढूंढने न निकल जाएं।