NEW DELHI : विकास का सपना केवल बड़े शहरों और महानगरों तक सीमित नहीं रह सकता। भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में प्रगति का असली पैमाना तब तय होगा, जब इसके छोटे जिले और कस्बे भी समृद्धि की राह पर चल पड़ेंगे। आजादी के सात दशक से अधिक बीत जाने के बाद भी देश के कई छोटे जिलों में बुनियादी सुविधाओं जैसे सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा का अभाव देखा जा सकता है। यह असंतुलन न केवल सामाजिक-आर्थिक असमानता को बढ़ाता है, बल्कि देश के समग्र विकास के लक्ष्य को भी कमजोर करता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने “विकसित भारत 2047” का जो संकल्प लिया है, उसे साकार करने के लिए नीतियों का केंद्र अब छोटे जिलों की ओर मोड़ना होगा। इन क्षेत्रों में औद्योगीकरण, रोजगार सृजन और स्थानीय संसाधनों के बेहतर उपयोग पर ध्यान देना जरूरी है। बड़े शहरों में जहां अवसरों की भरमार है, वहीं छोटे जिलों में प्रतिभाएं और संभावनाएं होने के बावजूद अवसरों का टोटा है। यह विडंबना है कि देश का एक बड़ा तबका गांवों और छोटे शहरों में रहता है, लेकिन विकास की गंगा अभी तक इनके दरवाजे तक नहीं पहुंची।
हाल के वर्षों में सरकार ने ग्रामीण और छोटे जिलों के विकास के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जैसे उज्ज्वला, पीएम आवास योजना और डिजिटल इंडिया। लेकिन इनका प्रभाव तभी स्थायी होगा, जब स्थानीय स्तर पर प्रशासनिक चुस्ती और जवाबदेही सुनिश्चित की जाए। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करना, कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना और कनेक्टिविटी को बेहतर करना इन क्षेत्रों के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकता है। इसके साथ ही, युवाओं को कौशल प्रशिक्षण देकर उनकी ऊर्जा को सही दिशा में लगाना भी जरूरी है, ताकि पलायन की मजबूरी खत्म हो सके। विकास की इस लड़ाई में निजी क्षेत्र की भागीदारी भी अहम है। सरकार और उद्यमियों को मिलकर छोटे जिलों में निवेश के नए रास्ते तलाशने होंगे। यह सच है कि बड़े शहर देश की अर्थव्यवस्था के इंजन हैं, लेकिन छोटे जिले उस नींव की तरह हैं, जिसके बिना इमारत अधूरी रहती है। जब तक हर जिले में समान अवसर और सुविधाएं नहीं पहुंचेंगी, तब तक “सबका साथ, सबका विकास” का नारा अधूरा रहेगा। समय आ गया है कि विकास की लड़ाई को जमीनी स्तर पर लड़ा जाए, तभी भारत सही मायनों में विकसित राष्ट्र बन सकेगा।
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