Operation Gibraltar : कश्मीर पर पाकिस्तान का नाकाम मंसूबा जिसने 1965 युद्ध को जन्म दिया
Operation Gibraltar : 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध का मुख्य कारण बना ‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’ पाकिस्तान का एक महत्वाकांक्षी लेकिन बुरी तरह विफल रहा मंसूबा था, जिसका उद्देश्य जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ कर भारतीय शासन के खिलाफ विद्रोह भड़काना और अंततः कश्मीर पर कब्जा करना था। अगस्त 1965 में शुरू हुए इस सैन्य अभियान के तहत, पाकिस्तान ने स्थानीय कश्मीरी नागरिकों के वेश में लगभग 30,000 प्रशिक्षित लड़ाकों (मुजाहिदीन) को जम्मू-कश्मीर में भेजा। उनकी रणनीति कश्मीरी मुसलमानों को भारत के खिलाफ भड़काना और पुलों, सुरंगों व सैन्य प्रतिष्ठानों को नष्ट करना था। तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान का मानना था कि वे कश्मीरी लोगों के बीच भारत विरोधी भावना का फायदा उठा सकते हैं।
हालांकि, पाकिस्तान की यह रणनीति कई कारणों से बुरी तरह विफल रही:
- स्थानीय समर्थन का अभाव: कश्मीरी लोगों ने घुसपैठियों का समर्थन नहीं किया और कई लोगों ने उनकी जानकारी भारतीय सेना को दी।
- पहचान का खुलना: घुसपैठिए कश्मीरी बोली नहीं जानते थे और उनकी पंजाबी बोली उन्हें तुरंत उजागर कर देती थी।
- खराब समन्वय: अभियान की योजना खराब थी और इसे लागू करने में कई गलतियां की गईं।
- भारतीय सेना की त्वरित प्रतिक्रिया: भारत ने तुरंत जवाबी कार्रवाई की और घुसपैठियों को खदेड़ते हुए पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में हाजी पीर दर्रा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया।
‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’ की विफलता के बाद पाकिस्तान ने ‘ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम’ शुरू किया, जिसके जवाब में भारत ने 6 सितंबर 1965 को अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार कर पश्चिमी मोर्चे पर हमला कर दिया और लाहौर की ओर बढ़ा। इस अप्रत्याशित कदम ने पाकिस्तानी सेना को हैरान कर दिया और उन्हें लाहौर सेक्टर में बल तैनात करने पड़े, जिससे अखनूर पर उनका दबाव कम हो गया।
यह विफलता ही 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध का तात्कालिक कारण बनी, जो 17 दिनों तक चला और अंततः ताशकंद समझौते पर समाप्त हुआ। ‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’ पाकिस्तान की एक बड़ी रणनीतिक गलती साबित हुई, जिसने भारत की सैन्य ताकत और आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करने के उसके संकल्प को उजागर किया।