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पूर्णिया

Purnia News: विद्यालय की जमीन पर लीज, पढ़ाई पर संकट: बांकी में 84 डिसमिल जमीन को लेकर गड़बड़ी, अंचल की निष्क्रियता पर सवाल

पूर्णिया, अभय कुमार सिंह: Purnia News एक ओर जहां ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यालयों की ज़मीन की कमी के कारण शिक्षा व्यवस्था चरमराई हुई है, वहीं दूसरी ओर अंचल कार्यालय की उदासीनता ने हालात को और गंभीर बना दिया है। ऐसा ही एक मामला रूपौली प्रखंड के बांकी गांव में सामने आया है, जहां पूर्वजों द्वारा दान दी गई विद्यालय की ज़मीन को सरकार ने भू-हदबंदी के तहत अधिग्रहित कर गांव के ही कुछ लोगों को लीज पर दे दिया।

मामला वर्ष 1961 का है, जब गांव के मो. स्व. शेख छेदी, पिता मो. स्व. शेख मांगन ने बच्चों की शिक्षा के मद्देनज़र 73 डिसमिल एवं 25 डिसमिल ज़मीन केवाला संख्या 2984, दिनांक 3.4.1961 के अंतर्गत राज्यपाल के नाम पर रजिस्ट्री कर दी थी। यह ज़मीन बांकी विद्यालय के लिए दान दी गई थी, परंतु दुर्भाग्यवश इसका नामांतरण आज तक नहीं कराया गया।

इस बीच वर्ष 1986-87 में वाद संख्या 2/1986-87 के तहत उक्त ज़मीन को सरकार ने भू-हदबंदी के तहत अधिग्रहित कर लिया और फिर गांव के ही मो. कमरूदीन सहित अन्य को इस पर बंदोबस्ती (लीज) परवाना जारी कर दिया गया। इस अनियमितता के खिलाफ मध्य विद्यालय, बांकी के प्रभारी प्रधानाध्यापक मो. नियामत नदाफ ने कई बार अंचल से लेकर जिला प्रशासन तक आवेदन देकर परवाना रद्द करने और विद्यालय के नाम से ज़मीन का नामांतरण करने की गुहार लगाई, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।

विद्यालय वर्तमान में मात्र दो कठा ज़मीन पर संचालित हो रहा है, जहां ना खेल का मैदान है, ना भवन के विस्तार की कोई गुंजाइश। इससे बच्चों की पढ़ाई और सर्वांगीण विकास गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है। ग्रामीण शमशेर बहादुर सिंह सहित अन्य लोगों ने भी इस मुद्दे को प्रशासन के समक्ष कई बार उठाया है। पिछले वर्ष सीओ द्वारा स्थल निरीक्षण जरूर किया गया था, लेकिन कार्रवाई का अभाव आज भी ज्यों का त्यों बना हुआ है।

इस संदर्भ में जब अंचलाधिकारी, रूपौली शिवानी सुरभि से बात की गई, तो उन्होंने कहा, “इस जमीन को वह दिखवा रही हैं, पहले मापी कर उसका सीमांकन किया जाएगा, तत्पश्चात परवाना रद्द करने की प्रक्रिया अपनाई जाएगी।” अब देखना यह है कि वर्षों पुरानी इस गड़बड़ी को दुरुस्त करने के लिए सरकार और प्रशासन कब तक प्रभावी कदम उठाते हैं, ताकि विद्यालय को उसकी वास्तविक ज़मीन मिल सके और बच्चों को पढ़ने के लिए एक समुचित शैक्षणिक वातावरण मिल सके।

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