पूर्णिया: योग सिर्फ़ व्यायाम नहीं, जीवन जीने की एक गूढ़ कला है — यह हमारी आत्मा की पुकार है, ब्रह्मांड से संवाद की शैली है। यह एक रोमांस है सांसों के साथ, एक दोस्ती है अपनी आत्मा से, और एक सौम्य विदा है उस निरंतर मानसिक शोर से जो हमें थकाता है। प्राचीन शास्त्रों की भाषा को शब्दों में नहीं, अनुभवों में महसूस किया जाता है — वे सुबह की ओस में, सूरज की पहली किरण में, पत्तों की सरसराहट में और हवा की गूंज में समाए रहते हैं। योग, इन्हीं अदृश्य पलों में हमें अपनी ओर बुलाता है।
इस अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर, आइए कुछ पल के लिए रुकें। एक गहरी सांस लें। अपने शरीर का धन्यवाद करें — जो हर भावना, हर विचार, हर सांस को अपने भीतर संजोए चलता है। अपनी चेतना के भीतर उतरें और उस शांत मंदिर को महसूस करें जो हमेशा हमारे भीतर रहा है।
योग कोई सीमा नहीं, एक विस्तार है — शरीर से ब्रह्मांड तक।
आज बस एक पल खुद को दें, और खुद से जुड़ जाएं।