PURNIA NEWS : कुम्हारों की जिंदगी अब सिमट गई चाय की कप बनाने तक, मिटी के बत्र्तन की अब नहीं रही पूछ
PURNIA NEWS/पूर्णिया, अभय कुमार सिंह: कुम्हारों की जिंदगी अब चाय की कप बनाने तक सिमट गई है, मिटी के बत्र्तन की अब पूछ नहीं रही है । चाय की कप भी इसलिए कि चाय पीनेवाले लोगों को मिटी के कप में स्वाद अच्छा लगता है । सदियां बीत गईं, यहां के कुम्हारों की किश्मत नहीं बदल पाई है । लगा था आजाद होगा देश तो गरीबों के दिन बहुरेंगे तथा विकास के पथ पर कुम्हारों की भी जिंदगी चल पडेगी, परंतु उल्टा हुआ, इनकी परंपरागत रोजगार भी धीरे-धीरे आधुनिकता मंे छिनती चली गई है । बता दें कि प्रखंड के बनकटा, विजय, श्रीमाता, गैदूहा सहित अन्य गांवों में कुम्हारों की खास आवादी है । दूर्भाग्य है कि आज देश की आजादी के 78 साल बीत जाने के बाद भी आज भी कुम्हार जाति के लोगों की किश्मत नहीं बदल पाई है । इस संबंध में माटी की चाय का कप बनाते हुए कुम्हार सह ग्राम कचहरी के पंच दीपनारायण पंडित ने बताया कि वे अब बुढे हो चूके हैं, जब से होश संभाला, तबसे यही कार्य करता आ रहा हूं । कभी भी सुखी जीवन का हाल नहीं जान पाया । उनकी जाति के लोगों को प्रायः जमीन ज्यादा नहीं हैं, इसलिए वे इसी परंपरागत धंधे पर आश्रित हैं । यह कार्य काफी उबाउ एवं मंहगा भी है, परंतु कोई काम नहीं होने के कारण वे अपनी परंपरागत इस धंधे पर ही उनकी जिंदगी पूरी तरह से आश्रित हैं । एक चाय का कप बनाने में लगभग पचास पैसे आते हैं, जबकि यह 90 पैसे बिकती है । लगभग 800 कप दिनभर में वे बना पाते हैं, जबकि इसे सुखाने एवं पकाने में अतिरिक्त समय लगता है । सरकार भी कभी उनकी ओर ध्यान नहीं दिया, उन्हें उनकी हाल पर छोड दी है । बच्चों को पढाने के लिए पैसे भी नहीं जूट पाते हैं । पैसे के अभाव में सामने देखिए उनके ही परिवार की लडकी कप सूखा रही है, आठवीं पास किया, परंतु नौवीं कक्षा में नाम लिखाने को पैसे नहीं हैं । मंहगी पढाई उनके बस की बात नहीं रह गई है, इसलिए बच्चे भी इसी धंधे में लिप्त हो रहे हैं । कुल मिलाकर आजतक इस प्रखंड में बसे हजारों की संख्या में कुम्हारों की जिंदगी आज भी उनकी परंपरागत धंधे पर ही टिकी हुई है । उनके बच्चे भी मंहगी पढाई के कारण विकास के पथ पर आगे नहीं बढ पा रहे हैं । देखें सरकार इनके उत्थान के लिए क्या करती है ।