Mahashivratri 2025: वरुनेश्वर स्थान में महाशिवरात्रि की सभी तैयारियां पूरी, लाखों लोग करेंगें बाबा को जलार्पण
पूर्णिया, आनंद यादुका: Mahashivratri 2025 पूर्णियाँ प्रमंडल के बाबाधाम के नाम से मशहूर बड़हरा प्रखंड के प्रसिद्ध बरुनेश्वर स्थान मंदिर में शिवरात्रि की तैयारियां पूरी हो गयी है | हिन्दू धर्मावलम्बियों के प्रमुख तीर्थ स्थानों में एक बाबा वरुनेश्वर मंदिर में शिवरात्रि के पूर्व हीं श्रधालुओं की काफी भीड़ उमड़ने लगी है| सूबे के कोने-कोने से जो श्रद्धालु यहाँ आकर बाबा के दर्शन मात्र कर लेते हैं वह खाली हाथ नहीं लौटता है| ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त यहाँ श्रद्धा पूर्वक बाबा को जलार्पण कर मन्नत मांगते हैं| बाबा उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण करते हैं| यों तो सभी दिन यहाँ श्रधालुओं की काफी भीड़ लगी रहती है| परन्तु सावन मास एवं शिवरात्रि के मौके पर यहाँ भक्तों की काफी लम्बी कतार लग जाती है| जिसको नियंत्रित करनें में प्रशासन के भी पसीने निकलने लगते हैं| बबा को शिवरात्रि के मौके पर जलार्पण करने के लिए सहरसा,मधेपुरा,खगड़िया,भागलपुर,किशनगंज, मुंगेर, सुपौल,कटिहार जिले के अलावे पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल,आसाम और पड़ोसी देश नेपाल से भी श्रद्धालु गंगाजल लेकर आते हैं|
मंदिर का इतिहास:—-
जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर बीकोठी प्रखंड,धमदाहा प्रखंड एवं भवानीपुर प्रखंड के सीमा पर मौजूद बाबा वरुनेश्वर मंदिर के बारे में कई किम्वदंतियां प्रचलित है| बीकोठी प्रखंड के सिरसिया मौजा में वरुणा गांव के समीप वरुन नदी के तट पर बाबा वरुनेश्वर का भव्य व आकर्षक मंदिर अवस्थित है| द्वादस लिंगों की तरह वरुनेश्वर मंदिर का कामना शिव लिंग स्वयंभू लिंग है अर्थात यह शिव-लिंग अपने भक्तों के कल्याणार्थ स्वयं प्रकट हुआ है| ऐसी मान्यता है कि प्राचीन काल में यहाँ घोर जंगल हुआ करता था| और इस इलाके के चरवाहे यहाँ के जंगलों में अपना जानवर चराने का काम करता था| सभी दिनों की भांति चरवाहे इस जंगल में अपनी गायें चरा रहे थे| इस दौरान चरवाहों नें झुण्ड से निकल कर एक काली गाय को एक ख़ास दिशा की तरफ जाते देखा| गाय प्रतिदिन ऐसा करती थी| कौतुहलवश चरवाहों नें उस काली गाय का पीछा किया| अपने लक्ष्य पर पहुंचकर वह गाय अपने स्तन से दुग्धधार बरसा रही थी| चरवाहे दुग्धधार से नहाये स्वयंभू शिवलिंग के दिव्य दर्शन कर चिल्लाने लगे| चरवाहों के चिल्लाने पर आस-पड़ोश के ग्रामीण वहां दौड़ पड़े| नयनाभिराम शिवलिंग को को देख चकित-चित लोगों नें इसकी खुदाई करने की ठान ली| कहा जाता है कि खुदाई करते करते सब थक गए| शिवलिंग से स्वतः स्फूर्त लाल रंग का नीर निकलते देख ग्रामीणों नें विधि-विधान से इसकी पूजा अर्चना करने का काम किया| उसके बाद स्थानीय लोगों के द्वारा सामूहिक प्रयास से वहां फूस की छतरी बनाई गयी| और उसके बाद वहां बहदुरा स्टेट के पूर्व मुखिया रणविजय सिंह के पूर्वजों के द्वारा बाबा वरुनेश्वर का मंदिर बनाया गया जो 1934 के प्रलयंकारी भूकम्प में ध्वस्त हो गया| बाद में पुनः बाबा की प्रेरणा से बिष्णुपुर ड्योढ़ी के धीर नारायण चंद नें मंदिर निर्माण का श्रेय प्राप्त किया| इस प्रकार समय बीतता गया और बाबा वरुनेश्वर स्थान का विकास होता गया| पड़ोस के वरुणा ग्राम के जमींदार रामलाल चन्द्र नें बाबा मंदिर के बगल में पार्वती मंदिर का निर्माण करवाया| वहीं जन सहयोग से परिसर में राम-जानकी मंदिर एवं हनुमान मंदिर भी बनाये गए और बिहारीगंज मधेपुरा के एक मारवाड़ी नें मंदिर के दक्षिण हिस्से में एक धर्मशाला भी बनवाया है|
एक अन्य किम्वदंती के अनुसार द्वापर युग में महाभारत युद्ध से पूर्व वनवास के दौरान पांडव यहाँ डेरा डाले थे और पांडवों को जान से मारने की नियत से दुर्योधन नें इसी वारनावर्त में अपने सहयोगी पुरोचन के सहयोग से लाह का घर बनवाया था| दुर्योधन नें जब पांडव को मारने की नियत से लाक्षागृह को आग के हवाले किया तो पांडव सभी भाई मंदिर के ठीक सामने स्थित शिवगंगा के निचे से बने सुरंग के रास्ते सकुशल बाहर निकल गए थे और उसके बाद से इस स्थान का नाम वारनावर्त यानी वरुणा पड़ा था और इसके बगल से गुजरने वाली नदी का नाम वरुणाधार और इसके बगल के गांव का नाम भी वरुना पड़ा था| बाबा वरुनेश्वर के बारे में जनमानस में एक और किम्वदंती प्रचलित है| जिसके अनुसार अगस्त ऋषि के शिष्य वरुण ऋषि नें उक्त शिवगंगा में स्नान कर बाबा वरुनेश्वर नाथ का पूजा अर्चना किया था और तब से यह पावन स्थान वरुनेश्वर स्थान के नाम से बिख्यात हुआ था| इस स्थान का ऐतिहासिक महत्व भी जग जाहिर है| सन 1950 के आस-पास बाबा वरुनेश्वर स्थित कतिपय टीलों में से एक की खुदाई की गई थी| जिसमें हजारों बर्ष पूर्व बहुमूल्य प्रस्तर निर्मित मूर्तियाँ,ईटें व कई अन्य वस्तुएँ प्राप्त हुआ था|