पूर्णिया, अभय कुमार सिंह: गांवों में जैसे-जैसे सुविधाएं आने लगी, वैसे-वैसे लोगों के श्रम एवं बहुत ऐसी चीजें छूटती चली जा रही हैं, जिसे चाह कर भी अब ग्रामीण प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं। इसी में से गांव के लोगों की सबसे पहली पसंद अपने घर का चावल एवं चूडा काफी पीछे छूटता दिख रहा है तथा लोग बस इसे याद करके रह जा रहे हैं। इसमें से नये धान का चावल एवं चूडा, को देखते ही लोगों का मन मचल जाता है। गांव में एकाध लोग आज भी अपने से अपनी उपजायी धान को उसनकर खाने के लिए चावल तैयार करते हैं, वह खाने में स्वादिष्ट होने के साथ-साथ केमिकल से मुक्त होता है।
ठीक इसी तरह चूडा के लिए भी धान को तारकर चूडा कूटते हैं, इससे उसमें स्वाद बना रहता है। नये चावल का माड-भात इतना स्वादिष्ट होता है कि लोगों को अगर इसके अलावा कुछ नहीं भी मिले तो उसे चाव से खा लेते हें। ठीक इसी तरह चूडा का भी है, चूडा तैयार होते ही लोग चूडा-दूध, चूडा-दही बडे चाव से खाते हैं। जब से चूडा कूटने की मशीन, डीलरों के यहां से मिलनेवाला उसना चावल, हाट-बाजारों में उपलब्ध तैयार चावल आने लगा, लोगों ने घर में चावल-चूडा बनाना ही बंद कर दिया है।
इससे कई तरह के प्रभाव भी लोगों में दिखने लगा है। शारिरिक श्रम घट जाने के कारण गांव के लोगों के स्वास्थ्य पर भी सीधा असर पडता देखा जा रहा है तथा वे काफी संख्या में अस्वस्थ्य भी रहने लगे हैं। यह बता दें कि पहले गांव की महिला या पुरूष काफी श्रम करते थे, जिससे उनका स्वास्थ्य काफी हदतक ठीक रहता था। कुल मिलाकर लोगों नई-नई तकनीकें के तहत अनेक सुविधाएं तो मिलने लगी हैं, परंतु इसका खामियाजा भी लोग भुगतने लगे हैं। घर के बने स्वादिष्ट अनाजों से दूर होते जा रहे हैं। अगर शारिरिक श्रम की इसी तरह से लोगों में कमी होती चली गई, तो निश्चित ही एकदिन सभी लोग बीमार नजर आएंगे।

