PURNIA NEWS : नदी मित्र, पूर्णियां इकाई के द्वारा कोसी अंचल की लुप्तप्राय नदियों विषय पर नदी संवाद का आयोजन , कला भवन पूर्णियां में किया गया। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता नदी विशेषज्ञ तथा फिजी में भारत के पूर्व सांस्कृतिक राजनयिक डॉ ओम प्रकाश भारती थे। डॉ. भारती ने कहा आज कोसी अंचल की एक दर्जन से अधिक नदियां विलुप्त होने की स्थिति में हैं। इन नदियों में सौरा काली कोसी,तिलयुग, बैती, धेमुरा/ पुरैन, तिलावे, परवाने, फ़रैनी, हरसंखनी, चिलौनी, सुरसर, लोरम, हाहा, हिरन, सोनेह , बरहरी , दुलारी दाई , कमताहा कजरी आदि लुप्त प्रायः है। पूर्णियां जिले की कजरी , फरियानी तथा दुलारी दाई ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक रूप महत्वपूर्ण नदी है। कजरी धार और महुआ घटवारीन की कथा प्रसिद्ध कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी तीसरी कसम से जुड़ी है। परती परीकथा में दुलारी देई नदी का वर्णन है। रेणु और नदियों के कारण कोसी अंचल की राष्ट्रीय पहचान बनी। अन्य साहित्यकारों में सुरेन्द्र स्निग्ध का उपन्यास छाड़न और उनकी कविताओं तथा चंद्रकिशोर जायसवाल की एक दर्जन से अधिक कहानियों में पूर्णियां अंचल की नदी संस्कृति तथा त्रासदी का चित्रण हुआ है। लेकिन अब नदियां लुप्त होने की स्थिति में हैं। पूर्णियां शहर के बीचों बीच बहने वाली सौरा नदी अब नाला बनते जा रही है। सौरा नदी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक नदी रही है। पूर्णियां का पूरनदेवी मंदिर और सिटी काली मंदिर सौरा नदी के किनारे स्थित हैं। हर साल देव दीपावली, कार्तिक पूर्णिमा पर सिटी काली मंदिर में कोसी आरती का वार्षिक आयोजन किया जाता है। इन नदियों के लुप्त होने के पीछे कई कारण हैं, जैसे पर्यावरणीय परिवर्तन, मानवीय हस्तक्षेप, नदियों में प्रदूषण, जलकुंभी का फैलाव, और नदियों के प्राकृतिक मार्ग में बदलाव है। जलकुंभी एक आक्रामक पौधा है, जो नदियों के प्रवाह को रोकता है और पानी को दलदल में बदल देता है।अतिक्रमण: नदियों के किनारों पर अवैध निर्माण और अतिक्रमण ने उनके प्राकृतिक मार्ग को बाधित किया है। बदलते मौसम और कम वर्षा ने नदियों के जलस्तर को प्रभावित किया है। सरकारी स्तर पर नदियों के संरक्षण और पुनर्जनन के लिए ठोस प्रयासों की कमी है, जिसके कारण नदियां लुप्त हो रही हैं। कोसी तथा उसकी सहायक धाराएं हिमालय के चीन तथा तिब्बत के पठार से निकलती है। चीन हिमालय की नदियों पर ड्रेगन नीति के तहत उच्च बांध बना रहा है। अरुण कोसी पर वह बांध बना चुका है। बांध क्षेत्र में हजारों वर्गमील में विशाल झील बन चुकी है। यदि कभी यह बांध टूटता है तो उत्तर बिहार में प्रलयकारी बाढ़ आएगी।इस बांध ने कोसी की धारा को प्रभावित किया है। सूखे के दिनों में कोसी नदी में पर्याप्त पानी नहीं होता है। कई जीव जन्तु संकट में आ जाते हैं। इससे पहले चीन ब्रम्हपुत्र और सिंधु नदी को बांध चुका है। चीन के इस नीति के प्रति लोगों को जागरूक करना होगा। अंतर्राष्ट्रीय मंच पर इस मुद्दे को जीवित रखना होगा, नहीं तो ड्रेगन धीरे धीरे नदियों को निगल जायेगा।
नदी मित्र द्वारा बिहार की नदियों के सांस्कृतिक मान चित्रण का संकल्प लिया गया है। इसमें नदियों की जनगणना के साथ नदियों से जुड़े मिथक, कहानी, गीत तथा ऐतिहासिक विवरणों को एकत्र किया जाएगा। साथ ही नदियों किनारे बसे समुदायों, तीर्थस्थलों और सांस्कृतिक स्थल, पर्व, त्यौहार तथा अनुष्ठानों का अध्ययन किया जा रहा है। स्थानीय लोगों और विद्वानों से साक्षात्कार के माध्यम से मौखिक परंपराओं का संकलन एवं संरक्षण का कार्य किया जा रहा है। भौगोलिक सूचना प्रणाली द्वारा नदियों का ‘डेटाबेस’, ‘डिजिटल आर्काइव’ तथा संग्रहालय का निर्माण की योजना बनाई गई है। इस खास मौके पर प्रेस क्लब पूर्णिया तथा बिहार प्रदेश अध्यक्ष नंदकिशोर सिंह ने कहा कि नदी हमारी अविरल भारती धारा है जिसे हम सभी को चाहिए कि रुकने नहीं दें। हमारे स्वास्थ्य नदी है हमारे जीवन नदी है परंतु हम आम मानव ही इसके सर्वनाश पर लगे हुए हैं। सरकार तथा आम जनता को अपने-अपने ताकत के हिसाब से जागना होगा की नदियों का तालाबों का संरक्षण कैसे हो कैसे विकास के अंधेरे में नदियां होती जा रही है उसकी सुरक्षा हो। नंदकिशोर सिंह ने यह भी कहा कि एक सौरा नदी कोसी नाव यात्रा होनी चाहिए जिसमें हर तरह के लोग हो इसका अध्ययन किया जा सके। सुमित युवा पर्यावरण वादी सुमित प्रकाश ने कहा कि हमें किसी न किसी रूप में हर तरह से जागरूक होकर कार्यों को करना होगा। उन्होंने बहुत सारी जानकारियां लोगों के समक्ष साझा की एवं कहा कि सरकार के साथ-साथ हमें खुद से भी आगे बढ़ना होगा छोटी नदियां जीवित रहेगी तो ही बड़ी नदियों का अस्तित्व बचा रहेगा।
प्रसिद्ध रंगकर्मी विश्वजीत सिंह छोटू ने कहा कि हम कलाकार हमारी टीम सभी नुक्कड़ नाटकों द्वारा नदियों का अस्तित्व बचाने के लिए जागरूकता अभियान चलाएंगे। कलाभवन की टीम एवं रेणु रंगमंच की टीम नाटकों द्वारा लोगों में नदी के सुरक्षा के लिए जागरूकता अभियान चलाएंगे। वरिष्ठ रंगकर्मी अखिलेश अखिल ने कहा जैसे हमारी स्थानीय भाषा, स्थानीय मिट्टी, स्थानीय रहन-सहन जीवित, स्थानीय लोकगीत, स्थानीय संस्कृति है उसी प्रकार हमारे स्थानीय नदियों तालाबों एवं कुओं का जीवित रहना जरूरी है जिससे नदी का जलस्तर बना रहे। साहित्यकार निर्देश कवि एवं रंगकर्मी गोविंद दास ने इस प्राकृतिक मसले पर प्रकाश डालते हुए कहा कि नदियों के उद्गम से लेकर समागम तक की जिम्मेवारी नदियों ने अपने ऊपर ले रखी है तो फिर हम सभी जनमानस को चाहिए कि हम उन नदियों की जिम्मेवारी लेने और उनको बचे जो हमें सदियों सदियों से बचते आ रही है और बचाते बचाते अपनी आहुति देते जा रही है। उन्होंने कहा कि आज हमारे बीच उपस्थित नदी मित्र ओमप्रकाश भारती जी का स्वागत है और उनके साथ देने के लिए हम सभी उपस्थित लोग हमेशा तैयार हैं। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ रंगकर्मी तथा पत्रकार कुंदन कुमार ने तथा धन्यवाद ज्ञापन युवा रंगकर्मी शिवाजी राव ने किया।